पेश है नन्हीं सी बहर की एक नन्हीं सी
ग़ज़ल
बहर : २१२ २१२ २१२
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‘राहबर’ जब हवा हो गई
नाव ही नाखुदा हो गई
प्रेम का रोग मुझको लगा
और ‘दारू’ दवा हो गई
जा गिरी गेसुओं में तेरे
बूँद फिर से घटा हो गई
चाय क्या मिल गई रात में
नींद हमसे खफ़ा हो गई
लड़ते लड़ते ये बुज़दिल नज़र
एक दिन सूरमा हो गई
जब सड़क पर बनी अल्पना
तो महज टोटका हो गई
माँ ने जादू का टीका जड़ा
बद्दुआ भी दुआ हो गई
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