शनिवार, 29 दिसंबर 2012

कविता : ऐसा क्यूँ है?


कुछ लोग जानते थे
कि देश में संविधान नाम का एक भूत है
जो खम्भों पर खड़े महल में निवास करने वाले अघोरियों का गुलाम है

कुछ नर जानते थे
कि देश में कानून नाम का एक लकड़बग्घा है
जो युद्ध खत्म होने के बाद लाशें नोचकर अपना पेट भरने आता है

कुछ जानवर जानते थे
कि इस देश में नर देवता होता है
जिसका चरित्र कैसा भी हो लेकिन पत्नी द्वारा पूजा जाता है
और मादा होती हैं गाय
जो सब कुछ चुपचाप सहकर दूध देती है

कुछ शैतान जानते थे
कि इस देश की एक पवित्र नदी में नहाने पर
या हजारों साल पुरानी कहानियाँ श्रद्धा भाव से सुनने पर
जघन्य से जघन्य पाप ईश्वर द्वारा तुरंत क्षमा कर दिया जाता है

कुछ हैवानों की बचपन की चाहत थी
एक सुंदर मादा के साथ जंगल में घूमने की
लेकिन उनमें न इतनी योग्यता थी न इस देश में इतने रोजगार
कि वो पा सकें अपने सपनों की मादा
और दूसरे योग्य नरों के साथ सुंदर मादा देखते ही फूट पड़ता था उनका गुस्सा

कुछ हैवानों का बचपन बीता था एक ऐसे जंगल में
जहाँ नर और मादा को अपनी नैसर्गिक इच्छाएँ इस सीमा तक दबानी पड़ती हैं
कि जरा सी कमजोरी उन्हें एक भयंकर विस्फोट के साथ बाहर निकालती है
जैसे फटता है ज्वालामुखी

कुछ हैवान ये नहीं जानते थे
कि हर मादा गाय नहीं होती
गलतफ़हमी में वो शेरनी का दूध निकालने गए
और बुरी तरह घायल हुआ उनका अहंकार
बचपन से इस देश के हर नर के खून में घुला हुआ अहंकार
वो अहंकार जो बाहर निकलता है तो अच्छे अच्छे इंसानों को प्रेत बना देता है

अमृत विष की काट नहीं होता
विष की काट हमेशा विष ही होता है
अमृत एक अलग तरह का विष है

ऐसा क्यूँ है?
इस प्रश्न का उत्तर दुर्धर और अविश्वसनीय है
इसीलिए सब के सब
क्या होना चाहिए?
इस प्रश्न का उत्तर तलाशते हैं

लेकिन अब इस प्रश्न का उत्तर तलाश करने का समय आ गया है
कि इतने सारे धर्मग्रन्थ, नियम, कानून, उपदेश, साहित्य
मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे,
पूजा, आरती, प्रार्थना, अजान, नमाज
युगों युगों से होने के बावजूद
ऐसा क्यूँ है?

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

लघु कथा : राष्ट्रीय वन निगम


(पूर्णतया काल्पनिक, वास्तविकता से समानता केवल संयोग)

बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल में शेर, लोमड़ी, गधे और कुत्ते ने मिलकर एक कंपनी खोली, जिसका नाम सर्वसम्मति से ‘राष्ट्रीय वन निगम’ रखा गया । गधा दिन भर बोझ ढोता। शाम को अपनी गलतियों के लिए शेर की डाँट और सूखी घास खाकर जमीन पर सो जाता।  कुत्ता दरवाजे के बाहर दिन भर भौंक भौंक कर कंपनी की रखवाली करता और शाम को बाहर फेंकी हड्डियाँ खाकर कागजों के ढेर पर सो जाता। लोमड़ी दिन भर हिसाब किताब देखती। हिसाब में थोड़ा बहुत इधर उधर करके वो शाम तक अपने भविष्य के लिए कुछ न कुछ जमा कर लेती। शाम को लोमड़ी के काम के बदले उसे बचा हुआ मांस मिलता जिसे खाकर वो कंपनी से मिले मकान में जाकर सो जाती। 

शेर दिन भर अपनी आराम कुर्सी पर बैठे बैठे दो चार जगह फोन मिलाता। तंदूरी मुर्गा खाता। हड्डियाँ दरवाजे के बाहर फेंक देता और पेट भरने के बाद बचा हुआ मुर्गा लोमड़ी के पास भिजवा देता। शाम को गधे के पास जाकर पहले उसे डाँटता फिर और ज्यादा बोझ ढोने के लिए प्रोत्साहित करता। यह सब करने के बाद वो अपने महल में मखमल के गद्दे पर जाकर सो जाता। चारों जानवर इस व्यवस्था से बड़े प्रसन्न थे और सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने अपने बच्चों को भी उसी काम में लगा दिया।

तब से यही सिस्टम चला आ रहा है। आज तक लोमड़ी, गधे या कुत्ते के वंशजों ने शेर के कमरे में झाँककर यह जानने की कोशिश नहीं की कि शेर दिन भर आखिर करता क्या है?

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

कविता : जंगली जानवर


जंगली जानवर
छीन लेते हैं
दूसरों से उनका साथी
अपने रूप या फिर अपनी शक्ति से

जंगली जानवर
छोड़ जाते हैं
अपने साथी को
आनंद भोगने के पश्चात
अपने बच्चे पालने के लिए

जंगली जानवर
अपने दिमाग का प्रयोग
केवल भूख मिटाने
और लड़ने के लिए करते हैं

जंगली जानवर
जंगली ही रहते हैं
अपनी प्रजाति लुप्त हो जाने तक

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

ग़ज़ल : बरगदों से जियादा घना कौन है?


बरगदों से जियादा घना कौन है?
किंतु इनके तले उग सका कौन है?

मीन का तड़फड़ाना सभी देखते
झील का काँपना देखता कौन है?

घर के बदले मिले खूबसूरत मकाँ
छोड़ता फिर जहाँ में भला कौन है

लाख हारा हूँ तब दिल की बेगम मिली
आओ देखूँ के अब हारता कौन है

प्रश्न इतना हसीं हो अगर सामने
तो फिर उत्तर में नो कर सका कौन है