पहने ये लोहे का कोट
खाता रोज बैटरी चार
तब ढो पाता अपना भार
चमचम चमकाकर तलवार
करता रहे हवा में वार
चारों ओर घुमा गर्दन
फ़ायर करता अपनी गन
जब मैं पढ़ लिख जाऊँगा
रोबो बड़ा बनाउँगा
जो घर के सब काम करे
मम्मी बस आराम करे
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बहुत बढ़िया भाई धर्मेन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
धन्यवाद रविकर जी
हटाएंवाह ,,,, बहुत सुंदर बालगीत,,,
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना,,,धर्मेन्द्र जी,,,
RECENT POST:..........सागर
शुक्रिया भदौरिया जी
हटाएं