जहाँ न सोचा था
कभी, वहीं दिया दिल खोय
ज्यों मंदिर के
द्वार से, जूता चोरी होय
सिक्के यूँ मत
फेंकिए, प्रभु पर हे जजमान
सौ का नोट चढ़ाइए,
तब होगा कल्यान
फल, गुड़, मेवा,
दूध, घी, गए गटक भगवान
फौरन पत्थर हो
गए, माँगा जब वरदान
ताजी रोटी सी
लगी, हलवाहे को नार
मक्खन जैसी
छोकरी, बोला राजकुमार
संविधान शिव सा
हुआ, दे देकर वरदान
राह मोहिनी की
तकें, हम किस्से सच मान
जो समाज को श्राप
है, गोरी को वरदान
ज्यादा अंग गरीब हैं,
थोड़े से धनवान
बेटा बोला बाप
से, फर्ज करो निज पूर्ण
सब धन मेरे नाम कर,
खाओ कायम चूर्ण
ठंढा बिल्कुल
व्यर्थ है, जैसे ठंढा सूप
जुबाँ जले उबला
पिए, ऐसा तेरा रूप
:):) बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी
हटाएंहाथी जैसा देह है,गेंड़े जैसी चाल।
हटाएंतरबूजे सी खोपड़ी,खरबूजे सा गाल।
हमें सोरठे मोहते, बढ़िया भाव बहाव ।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक डालते, रविकर हृदय प्रभाव ।।
आप के दोहे सोरठे के रूप में पढ़ गया अपने डैश बोर्ड पर-
देखिये तो क्या अनर्थ हो गया-
हलवाहे को नार, मक्खन जैसी छोकरी |
बोला राजकुमार, संविधान शिव सा हुआ||1||
दे देकर वरदान, राह मोहिनी की तकें |
हम किस्से सच मान, जो समाज को श्राप है ||
गोरी को वरदान, ज्यादा अंग गरीब हैं,
थोड़े से धनवान, बेटा बोला बाप से ||
फर्ज करो निज पूर्ण, सब धन मेरे नाम कर,
खाओ कायम चूर्ण, ठंढा बिल्कुल व्यर्थ है ||
प्रभु पर हे जजमान, सौ का नोट चढ़ाइए |
तब होगा कल्यान, फल, गुड़, मेवा, दूध, घी ||
वहीं दिया दिल खोय, ज्यों मंदिर के द्वार से,
जूता चोरी होय, सिक्के यूँ मत फेंकिए ||
गए गटक भगवान फौरन पत्थर हो गए,
माँगा जब वरदान, ताजी रोटी सी लगी ||
धन्यवाद रविकर जी
हटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक कुछ कहना है पर है ।।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रविकर जी
हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजेश कुमारी जी
हटाएंबहुत उम्दा लगे आपके हास्य दोहे,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी,,,,आपका फालोवर बन गया हूँ आप भी फालोवर बने तो मुझे हार्दिक
खुशी होगी,,,,,
RECENT POST:..........सागर
शुक्रिया
हटाएंबाह!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...!
शुक्रिया
हटाएंdohon me parihaas hai padh dekhen srimaan .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंदोहे हंसी के रंग मेंछलक छलक जाये
जवाब देंहटाएंधर्मेंद्र जी और पाठक पुलक पुलक जायें ।
शुक्रिया
हटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
शुक्रिया
हटाएंबेहतरीन..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंwaah...bahut khoob, bahut sundar:-)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंवाह बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबढ़िया !:)
जवाब देंहटाएं~सादर !!!
शुक्रिया
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबढ़िया दोहे....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब
हटाएंअत्यंत हास्यपूर्ण रचना,,,:)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :)
हटाएंवाह बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंDukh Mora Sathi o sakhi ,manuva peer pravah,ghadi vipati dekh k Sathi choote jay
जवाब देंहटाएंSukh k Sathi Prem k dukh me lqparvah,hriday mile n man mile usse kese nibah
जवाब देंहटाएंSukh k Sathi Prem k dukh me lqparvah,hriday mile n man mile usse kese nibah
जवाब देंहटाएंDukh Mora Sathi o sakhi ,manuva peer pravah,ghadi vipati dekh k Sathi choote jay
जवाब देंहटाएंसर कविता के द्वारा आपने जो व्यंग की है, वो आज के परिवेश में बिलकुल सटीक बेठता है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराग जी
हटाएंVery nice sir
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राहुल जी
हटाएंबहुत उम्दा सर जी
जवाब देंहटाएंशानदार लेखन, आनंददायक ।
जवाब देंहटाएंNice post
जवाब देंहटाएंhttps://thegoodhome.in/