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शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

ग़ज़ल : मज़ारों पर चढ़े भगवा, हरा सिंदूर हो जाए


निरक्षरता अगर इस देश की काफ़ूर हो जाए
मज़ारों पर चढ़े भगवा, हरा सिंदूर हो जाए

ये मूरत खूबसूरत है न रख इतनी उँचाई पर
कभी नीचे गिरे तो पल में चकनाचूर हो जाए

हसीना साथ हो तेरे तो रख दिल पे जरा काबू
तेरे चेहरे की रंगत से न वो मशहूर हो जाए

लहू हो या पसीना हो बस इतना चाहता हूँ मैं
निकलकर जिस्म से मेरे न ये मगरूर हो जाए

जहाँ मरहम लगाती वो वहीं फिर घाव देती है
कहीं ये दिल्लगी उसकी न इक नासूर हो जाए

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