केवल परिमाण ही काफ़ी नहीं है
आवश्यक है सही दिशा भी
प्रेम सदिश है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
प्रेम सदिश कवि कह रहा , सदिश रहे विश्वास ।
जवाब देंहटाएंसंरेखी हरदम रहें, जगी रहेगी आस ।
जगी रहेगी आस, मगर विक्षोभ अदिश सा ।
रहे सदा ही साथ, हकीकत का यह हिस्सा ।
बढ़ता जब परिमाण, बड़ा परिणाम भयानक ।
हंसी ख़ुशी की कथा, दुखान्ती होय कथानक ।।
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
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