पृष्ठ

बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

क्षणिका : संवेग

अत्यधिक वेग से उच्चतम बिंदु पर पहुँचने वाले को
स्वयं का संवेग ही नीचे ले जाता है।

नियंत्रित संवेग के साथ धीरे धीरे ऊपर चढ़ने वाला ही
उच्चतम बिंदु पर अपना संवेग शून्य कर पाता है
और इस तरह देर तक उच्चतम बिंदु पर टिका रह पाता है।

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

ग़ज़ल : मज़ारों पर चढ़े भगवा, हरा सिंदूर हो जाए


निरक्षरता अगर इस देश की काफ़ूर हो जाए
मज़ारों पर चढ़े भगवा, हरा सिंदूर हो जाए

ये मूरत खूबसूरत है न रख इतनी उँचाई पर
कभी नीचे गिरे तो पल में चकनाचूर हो जाए

हसीना साथ हो तेरे तो रख दिल पे जरा काबू
तेरे चेहरे की रंगत से न वो मशहूर हो जाए

लहू हो या पसीना हो बस इतना चाहता हूँ मैं
निकलकर जिस्म से मेरे न ये मगरूर हो जाए

जहाँ मरहम लगाती वो वहीं फिर घाव देती है
कहीं ये दिल्लगी उसकी न इक नासूर हो जाए

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

कविता : गोरों की भाषा


 वर्षों हम गोरों के गुलाम रहे
सारी दुनिया उनकी गुलाम थी
जब तक उन्हें बेइज्जत करके नहीं निकाला गया
उन्होंने दुनिया का कोई देश नहीं छोड़ा

क्या हम गोरों की भाषा के गुलाम सिर्फ़ इसलिए बने रहें
क्योंकि कभी ये सारे विश्व पर राज करती थी
कितने ही देश इसे बेइज्जत करके निकाल चुके हैं
अब हमारी बारी है
बलिदान देने के लिए तैयार रहिए
स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने ही वाला है

सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

ग़ज़ल : गुलाब खिलने दे


नमी व धूप हवा दे गुलाब खिलने दे
नकाब रुख से उठा दे गुलाब खिलने दे

ये गाल बाग गुलाबों के, अश्क से इनको
भिगो के यूँ न जला दे गुलाब खिलने दे

ये रंग देख लबों का, है काँपता गुल भी
नकाब रुख पे गिरा दे गुलाब खिलने दे

जुटी है धूप सुबा से समझ के पंखुड़ियाँ
लब एक बार हिला दे गुलाब खिलने दे

उगीं बदन में हजारों गुलाब की डालें
जरा सा होंठ छुआ दे गुलाब खिलने दे

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

आलेख : हिग्स बोसॉन का सच


ब्रह्मांड की उत्पत्ति के ‘मानक सिद्धांत’ के अनुसार दिशाएँ, समय, द्रव्य और ऊर्जा इन सबका जन्म आज से 13.7 अरब वर्ष पहले हुए एक महाविस्फोट से हुआ। महाविस्फोट के तुरंत बाद ब्रह्मांड अत्यधिक गर्म और घना था परन्तु तुरंत ही ये ठंढा होना शुरू हुआ। ठंढा होने पर महाविस्फोट के लगभग 10-43 सेकेंड बाद द्रव्य का निर्माण करने वाले मूलभूत कण बनना शुरू हुए। इन कणों को मुख्यतया दो समूहों में विभक्त किया जा सकता है, क्वार्क और लेप्टॉन (इन दोनों समूहों को सम्मिलित रूप से फ़र्मिऑन कहा जाता है)। हर समूह में 6 कण होते हैं। ये कण जोड़ों में होते हैं जिन्हें ‘पीढ़ी’ भी भी कहा जाता है। सबसे हल्के और सबसे स्थायी कणों से पहली पीढ़ी बनती है जबकि भारी और अस्थायी कण दूसरी और तीसरी पीढ़ी का निर्माण करते हैं। ब्रह्मांड के सारे स्थायी द्रव्य का निर्माण पहली पीढ़ी के कणों से हुआ है। दूसरी और तीसरी पीढ़ी के भारी कण शीघ्रता से विघटित होकर पहली पीढ़ी के कणों में बदल जाते हैं।
क्वार्कों की पहली पीढ़ी ‘अप क्वार्क’ एवं ‘डाउन क्वार्क’ से, दूसरी पीढ़ी ‘चार्म क्वार्क’ एवं ‘स्ट्रेंज क्वार्क’ से तथा तीसरी पीढ़ी ‘टॉप क्वार्क’ एवं ‘बॉटम क्वार्क’ से बनती है। इन कणों में विद्युत आवेश, वर्ण आवेश, द्रव्यमान एवं घूर्णन नामक गुण होते हैं।
इसी प्रकार लेप्टॉनों की पहली पीढ़ी ‘इलेक्ट्रान’ एवं ‘इलेक्ट्रान-न्युट्रिनो’ दूसरी पीढ़ी ‘म्युऑन’ एवं ‘म्युऑन-न्युट्रिनो’ तथा तीसरी पीढ़ी ‘टाउ’ एवं ‘टाउ-न्युट्रिनों’ से बनती है। इलेक्ट्रान, म्युऑन एवं टाउ कणों में विद्युत आवेश, द्रव्यमान एवं घूर्णन होता है जबकि न्युट्रिनो उदासीन कण होते हैं जिनका द्रव्यमान नगण्य होता है। इन कणों पर वर्ण आवेश नहीं होता।
ब्रह्मांड के ठंढा होने पर चार मूलभूत बल भी उत्पन्न हुए (ऐसा माना जाता है कि महाविस्फोट के क्षण ऊर्जा घनत्व अत्यधिक होने की स्थिति में एक ही महाबल था जो ब्रह्मांड के ठंढा होने पर चार अलग अलग बलों में बँट गया)। इन चारों बलों को ‘मजबूत नाभिकीय बल’, ‘कमजोर नाभिकीय बल’, ‘विद्युत-चुम्बकीय बल’ एवं ‘गुरुत्वाकर्षण बल’ कहा जाता है। इन चारों बलों की शक्ति एवं सीमा अलग अलग होती है। ये चारों बल अलग अलग वाहक कणों के माध्यम से कार्य करते हैं। इन वाहक कणों को बोसॉन कहा जाता हैं। क्वार्क एवं लेप्टॉन परस्पर बोसॉनों का विनिमय करके ऊर्जा की असतत मात्रा का स्थानांतरण करते हैं।
मजबूत नाभिकीय बल का वाहक ग्लुऑन, कमजोर नाभिकीय बल के वाहक ड्ब्ल्यू एवं ज़ेड बोसॉन एवं विद्युत चुंबकीय बल का वाहक फोटॉन होता है। ग्लुऑन और फोटॉन द्रव्यमान रहित कण होते हैं तथा डब्ल्यू एवं ज़ेड बोसॉन काफी भारी होते हैं। इसी प्रकार गुरुत्वाकर्षण बल का वाहक ‘ग्रेविटॉन’ को माना जाता है, परन्तु अभी तक ग्रेविटॉन की प्रयोगों द्वारा पुष्टि नहीं की जा सकी है।
एक क्षण का दस लाखवाँ हिस्सा बीतते बीतते ब्रह्मांड इतना ठंढा हुआ कि तीन स्थायी क्वार्कों ने मजबूत नाभिकीय बल के प्रभाव में आकर प्रोटॉन (दो अप क्वार्क + एक डाउन क्वार्क) और न्युट्रॉन (एक अप क्वार्क + दो डाउन क्वार्क) का निर्माण किया। प्रोटॉन और न्युट्रऑन कमजोर नाभिकीय बल के प्रभाव में आए और उन्होंने एक साथ आकर नाभिक का निर्माण किया। लगभग 3,80,000 साल बाद नाभिक और इलेक्ट्रॉन विद्युतचुम्बकीय बल के प्रभाव से एक दूसरे से बँध गए और इस तरह आरम्भिक परमाणु बने जो मुख्यतया हीलियम और हाइड्रोजन परमाणु थे। अब भी ब्रह्मांड का ज्यादातर द्रव्य इन्हीं परमाणुओं से मिलकर बना है। इस घटना के लगभग 16 लाख साल बाद गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव दिखना शुरू हुआ जब इन परमाणुओं से बने बादलों ने गुरुत्व बल से संघनित होकर तारे और आकाशगंगाएँ बनाना शुरू किया। उसके बाद ब्रह्मांड लगातार ठंढा होता रहा और भारी परमाणु जैसे कार्बन, आक्सीजन और लोहा इत्यादि बनने शुरू हुए।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि महाविस्फोट के तुरंत बाद एक ही महाबल था जो बाद में चार अलग अलग बलों में बदल गया। इस प्रकार इन चारों बलों की सम्पूर्ण व्याख्या करने वाला एक ही मूलभूत सिद्धांत होना चाहिए जिससे अलग अलग परिस्थियों में ये चारों बल स्वतः उत्पन्न हों। ब्रह्मांड की उत्पत्ति के मानक सिद्धांत में मजबूत, कमजोर और विद्युत-चुंबकीय बलों का एकीकरण किया जा चुका है और इनकी व्याख्या करने वाले सिद्धांत को ‘वैद्युतकमजोर सिद्धांत’ कहा जाता है। परन्तु वैद्युतकमजोर सिद्धांत की समीकरणें सही हल दें इसके लिए आवश्यक था कि सारे कण द्रव्यमान रहित हों। परन्तु हम जानते हैं कि वास्तव में ज्यादातर कणों में द्रव्यमान होता है। इस दुविधा से निकलने के लिए पीटर हिग्स, राबर्ट ब्राउट एवं फ़्रंक्वाइस एंगलर्ट ने एक समाधान प्रस्तुत किया। उन्होंने सुझाव दिया कि महाविस्फोट के तुरंत बाद सारे कण द्रव्यमान रहित थे। जैसे ही ब्रह्मांड ठंढा हुआ और इसका तापमान एक क्रांतिक ताप से कम हुआ एक अदृश्य बलक्षेत्र अस्तित्व में आया जिसे ‘हिग्स क्षेत्र’ कहते हैं और इस क्षेत्र से संबंधित वाहक कण को ‘हिग्स बोसॉन’ कहते हैं। यह क्षेत्र ब्रह्मांड में हर जगह व्याप्त है। कोई भी कण जब हिग्स क्षेत्र के प्रभाव में आता है तो उसे द्रव्यमान प्राप्त होता है। जो कण जितना अधिक इस क्षेत्र से प्रभावित होता है उसका द्रव्यमान उतना ही अधिक होता है। जो कण हिग्स क्षेत्र से प्रभावित नहीं होते वो द्रव्यमान रहित रहते हैं जैसे फोटॉन एवं ग्लुऑन।
इस विचार ने समस्या का एक संतोषजनक हल सुझाया तथा स्थापित सिद्धातों और घटनाओं के साथ अच्छा तालमेल बिठाया। पर किसी ने कभी हिग्स बोसॉन के अस्तित्व की प्रयोगात्मक पुष्टि नहीं की थी। इस कण की खोज से हमें ये पता चल सकता था कि कणों के द्रव्यमान इतने विशिष्ट क्यों होते हैं। परन्तु दिक्कत ये थी कि हम हिग्स बोसॉन के द्रव्यमान के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ थे। वैद्युतकमजोर सिद्धांत से हमें ये पता चल गया कि इस कण का द्रव्यमान कहाँ से कहाँ तक हो सकता है। इतने द्रव्यमान के कण की प्रयोगात्मक पुष्टि के लिए हमें ढेर सारी ऊर्जा की आवश्यकता थी। ये ऊर्जा केवल सापेक्षिक वेग से गतिमान प्रोटॉनों को एक दूसरे से टकराकर ही प्राप्त की जा सकती थी। इसके लिए महामशीन (लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर) का निर्माण किया गया।  
दिनांक 04.07.2012 को महामशीन द्वारा हिग्स बोसॉन के अस्तित्व की प्रयोगात्मक पुष्टि के साथ ही वैद्युतकमजोर सिद्धांत का खोया हुआ हिस्सा मिल गया है। हिग्स बोसॉन का द्रव्यमान 125.3 ± 0.6 जीईवी आँका गया है। इस कण की खोज से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के मानक सिद्धांत को बल मिला है। अब वैज्ञानिक कणों के द्रव्यमान की उत्पत्ति संबंधी पहले से मौजूद सिद्धांतों की न केवल जाँच परख कर सकते हैं वरन इस संबंध में नए सिद्धांतों को प्रतिपादित करने का प्रयास भी कर सकते हैं। चौथे एवं आखिरी मूलभूत बल (गुरुत्वाकर्षण बल) को भी वैद्युतकमजोर सिद्धांत के साथ एकीकृत करके एक महासिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए भी नई दिशाएँ खुल गई हैं।
इस कण को ईश्वरीय कण भी कहते हैं और अक्सर लोग ऐसा समझते हैं कि इस कण की खोज से हमारी सारी समस्याएँ हल हो जाएँगी और हम ब्रह्मांड के सारे रहस्यों की व्याख्या करने में सक्षम हो जाएँगें। ऐसा सोचना सही नहीं है क्योंकि ये कण एक बड़ी पहेली का केवल एक छोटा सा हिस्सा है। इस कण के खोजे जाने से हमें पहेली के अन्य हिस्सों को खोजने और पहेली के साथ जोड़ने में थोड़ी आसानी हो जाएगी। अभी इस कण के अन्य गुणों जैसे घूर्णन इत्यादि का अध्ययन बाकी है। बोसॉन कणों का घूर्णन पूर्णांक होता है। मानक सिद्धांत के अनुसार इसका घूर्णन शून्य होना चाहिए किंतु यदि इस कण का घूर्णन शून्य से अलग कोई और पूर्णांक हुआ तो हमें मानक सिद्धांत को संशोधित करने की आवश्यकता पड़ेगी और उस स्थिति में संभवतः श्याम ऊर्जा और श्याम द्रव्य की व्याख्या भी मानक सिद्धांत के आधार पर की जा सकेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस कण की खोज ने नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। 

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

क्षणिका : सदिश प्रेम


केवल परिमाण ही काफ़ी नहीं है
आवश्यक है सही दिशा भी
प्रेम सदिश है