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मंगलवार, 11 सितंबर 2012

ग़ज़ल : जुबाँ मिली फिर भी कब कुछ कह पाता है जूता


जुबाँ मिली फिर भी कब कुछ कह पाता है जूता
इसीलिए पैरों से रौंदा जाता है जूता

शुरुआती विरोध कुछ दिन ही टिकता इसीलिए
फट जाने तक पैरों में फिट आता है जूता

पाँव पकड़ने की आदत जब लग जाती इसको
आजीवन फिर मैल पाँव की खाता है जूता

ईश्वर के चरणों की इज्जत बचा रहा फिर भी
मंदिर के बाहर ही रक्खा जाता है जूता

वफ़ादार कितना भी हो सब देते फेंक इसे
जैसे ही कुछ कहने को मुँह बाता है जूता

5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।

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  2. पाँव पकड़ने की आदत जब लग जाती इसको
    आजीवन फिर मैल पाँव की खाता है जूता/ज़रूर चिरकुटिया सियासी जूता होगा .
    ram ram bhai
    मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
    देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने

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  3. वफ़ादार कितना भी हो सब देते फेंक इसे
    जैसे ही कुछ कहने को मुँह बाता है जूता ..

    बहुत खूब ... जूता ... मुख्तलिफ अंदाज़ के शेर हैं सभी ... लाजवाब गज़ल ..

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  4. वाह जूते को भी मिली जबान
    फिर भी रहे बेजुबान ।

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