यार स्पिरिट लैंप ये बता
जब वो तेरे पास खड़ी होकर साँस लेती है
तब भी तेरी लौ हिलती तक नहीं
इतना नियंत्रण कैसे रखता है तू खुद पर
परखनली तू कैसे झेलती है
उसकी उँगलियों में हो रहा कंपन
अनुनादित होना तो दूर तू तो आवाज तक नहीं निकालती
अबे व्हीट स्टोन ब्रिज
उसके सामने भी
तेरा प्रतिरोध वैसे का वैसा कैसे बना रहता है
जरा एसीटोन को देखो
उसके हाथों पर गिरा फिर भी आग नहीं पकड़ी
मैं भी तो उन्हीं तत्वों से बना हूँ
जिनसे ये प्रयोगशाला भरी पड़ी है
फिर भी उसके आने पर मेरी हालत खराब हो जाती है
आखिर ये माजरा क्या है?
Kavita achchhi hai bahut achchha likha hai......
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