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‘ऋण’
मुझमें से तुमको घटा नहीं सका
‘धन’
तुमको मुझसे जोड़ नहीं सका
‘घात’
से कोई फर्क नहीं पड़ा हमपर
किसी भी ‘आधार’ पर लिया गया ‘लॉग’
कम नहीं कर पाया इस दर्द को
‘अवकलन’
नहीं निकाल सका इसके घटने या बढ़ने की दर
‘समाकलन’
नहीं पहुँच सका उस अनंततम सूक्ष्म स्तर पर
कि निकाल सके इसका क्षेत्रफल और आयतन
गणित और विज्ञान
अपनी सारी शक्ति लगाने के बावजूद
खड़े रह गए मुँह ताकते
उस ढाई आखर को समझने में
जिसे सैकड़ों साल पहले
एक अनपढ़ जुलाहे ने समझ लिया था
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 4/9/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.inपर की जायेगी|
जवाब देंहटाएंbahut sunder vyakhya......
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