बारिश ने पहाड़ों
को उनका यौवन लौटा दिया है
दो पास खड़े पहाड़
हरे दुपट्टे के नीचे तुम्हारे वक्ष हैं
मैं धरती द्वारा
साँस खींचे जाने की प्रतीक्षा करता हूँ
गोरे पानी से भरी
झील तुम्हारी नाभि है
मैं नैतिकता के
पिंजरे में फड़फड़ाता हुआ तोता हूँ
जिसे ये रटाया गया
है कि गोरे पानी में नहाने से आत्मा दूषित हो जाती है
प्रेम का रंग हरा
है
हर बादल को कहीं
न कहीं बरसना पड़ता है
मगर सारी बरसातें
बादलों से नहीं होती
भीगी पहाड़ी सड़कें
तुम्हारे शरीर के गीले वक्र हैं
मैं डरा हुआ
नौसिखिया चालक हूँ
डर हिमरेखा है
जिससे ऊपर प्रेम
के बादल भी केवल बर्फ़ बरसाते हैं
हरियाली का सौंदर्य
इस रेखा के नीचे है
दूब से बाँस तक
हरा सबके भीतर
होता है
हरा होने के लिए
सिर्फ़ हवा, बारिश और धूप चाहिए
बरसात में गिरगिट
भी हरा हो जाता है
उससे बचकर रहना
सारी नदियाँ इस
मौसम में तुम्हारे काले बालों से निकलती हैं
फिर भी मेरी
प्यास नहीं बुझती
लोग कहते हैं बरसात
के मौसम में पहाड़ों का सीजन नहीं होता
हर बारिश में
कितने ही पहाड़ आत्महत्या कर लेते हैं
तुम बारिश और
पहाड़
जान लेने के लिए
और क्या चाहिए
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