राबर्ट फ़्रास्ट के अनुसार कविता कुछ ऐसी चीज है जिसे कवि लिखते हैं।
जितने लोग उतनी परिभाषाएँ इसलिए अंततः किसी ने हारकर कहा कि कविता और प्रेम को परिभाषित करना असंभव है। पेश है भावातिरेक में हुआ एक उद्गार|
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बारिश धीरे धीरे गुनगुनाती है
वो सारे गीत जो मैं तुम्हारे लिए गाया करता था
झिल्ली और मेढक पार्श्व संगीत देते हैं
भीगी हुई सड़क से लौटती रोशनी तुम्हारी हँसी है
तुमसे प्यार करना
मूसलाधार बारिश में गाड़ी चलाने जैसा क्यों था?
उस भीषण दुर्घटना में मौत से बच जाना अभिशाप था
तुम्हारे बिना रहना हाथ पैरों के बगैर जीना है
भीगी हुई रातरानी तुम्हारे भीगे हुए नाखून के बराबर भी नहीं
है
भीगे हुए पहाड़ पर एक एक करके बुझती हुई बत्तियाँ
तुम्हारे गहने हैं जो मैंने उतारे थे एक एक कर
बारिश बंद हो गई है सड़कें सूख रही हैं
काश! एक बार फिर तुम बरसतीं मेरी आत्मा की नमी सूख जाने के
पहले
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