नीम तले सब ताश खेलते
रोज सुबह से शाम
कई महीनों बाद मिला है
खेतों को आराम
फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार
ढाल पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम
छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई सूरज ने आकर
छुए गुलाबी गाल
बोली छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम
शहर गया है गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना नए वक्त से
मिला महीनों बाद
फिर से महक उठे आँगन में
रोटी बोटी जाम
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
चारो अति उत्तम |
जवाब देंहटाएं२, ४, १ और ३
वाह ... गज़ब के सभी छंद ... मज़ा अ गया धर्मेन्द्र जी ... अभी अभी आपकी गज़ल पढ़ के आ रहा हूँ अब ये नवगीत ... आज तो छा गए अप ...
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