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शनिवार, 23 जून 2012

कविता : पूजा


एक भी दिन तुम्हारी पूजा करना भूल जाऊँ
या अगरबत्ती जलाना भूल जाऊँ
या माला फूल चढ़ाना भूल जाऊँ
या आरती करना भूल जाऊँ
या पूजा बीच में छोड़ कर
रोते हुए बच्चे को चुप कराने लग जाऊँ
या...................
जरा सी चूक और तुम नाराज हो जाओगे

तुम्हारी कृपा पाकर मैं गरीबों से घृणा करने लग जाऊँगा
तुम्हारा क्रोध मुझसे मेरी प्रिय वस्तुएँ छीन लेगा

अतः हे देवताओं! मैं नहीं करता तुम्हारी पूजा
कृपया अपनी कृपा और अपना क्रोध
इन दोनों को मुझसे दूर रक्खो

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