बुधवार, 20 जून 2012

कविता : धूप


सूरज नहीं थकता
धूप थक जाती है

सूरज नहीं सोता
धूप सो जाती है

सूरज के लिए अर्थहीन है
थक कर सोना

धूप जानती है
थक कर सोने का आनंद
सुबह फिर से नई हो जाने का आनंद

सूरज के मिटने के बाद
उसका बचा अंश अँधेरे का गुलाम हो जाएगा

धूप रोज जिएगी रोज मरेगी
पर अनंतकाल तक अँधेरे से लड़ती रहेगी

5 टिप्‍पणियां:

जो मन में आ रहा है कह डालिए।