शुक्रवार, 15 जून 2012

ग़ज़ल : कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे


जिनको आने में इतने जमाने लगे
कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे

जाने कब से मैं सोया नहीं चैन से
इस कदर ख्वाब तुम बिन सताने लगे

झूठ पर झूठ बोला वो जब ला के हम
आइना आइने को दिखाने लगे

है बड़ा पाप पत्थर न मारो कभी
जिनका घर काँच का था, बताने लगे

बिन परिश्रम ही जिनको खुदा मिल गया
दौड़कर लो वो मयखाने जाने लगे

प्रेम ही जोड़ सकता इन्हें ताउमर
टूट रिश्ते लहू के सिखाने लगे

भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का
जिसको जीने में हमको जमाने लगे

1 टिप्पणी:

  1. बिन परिश्रम ही जिनको खुदा मिल गया
    दौड़कर लो वो मयखाने जाने लगे

    प्रेम ही जोड़ सकता इन्हें ताउमर
    टूट रिश्ते लहू के सिखाने लगे

    वाह ...बहुत खूबसूरत गजल

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