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रविवार, 10 जून 2012

ग़ज़ल : डाकू भी जब चुनाव के दंगल में आ गए


डाकू भी जब चुनाव के दंगल में आ गए
बंदूक ले मजदूर ही चंबल में आ गए

हर भूल चूक तेरी जलेगी या गड़ेगी
उल्लू गधे भी सुन के ये मेडिकल आ गए

हो भीड़ तो चुपचाप सहें फूल हर सितम
भँवरों ने ये सुना तो वो लोकल में आ गए

तुलसी लगा के घर में सभी गाँव के सपूत
खाने कबाब शहर के होटल में आ गए

अनपढ़ गँवार थे तो खड़े थे जमीन पर
पढ़ लिख के हम भी ज्ञान के दलदल में आ गए

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