डाकू भी जब चुनाव के दंगल में आ गए
बंदूक ले मजदूर ही चंबल में आ गए
हर भूल चूक तेरी जलेगी या गड़ेगी
उल्लू गधे भी सुन के ये मेडिकल आ गए
हो भीड़ तो चुपचाप सहें फूल हर सितम
भँवरों ने ये सुना तो वो लोकल में आ गए
तुलसी लगा के घर में सभी गाँव के सपूत
खाने कबाब शहर के होटल में आ गए
अनपढ़ गँवार थे तो खड़े थे जमीन पर
पढ़ लिख के हम भी ज्ञान के दलदल में आ गए
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