जितना ज्यादा हम लिखते हैं
सच उतना ही कम लिखते हैं
दुनिया के घायल माथे पर
माँ के लब मरहम लिखते हैं
अब तो सारे बैद मुझे भी
रोज दवा में रम लिखते हैं
जेहन से रिसकर निकलोगी
सोच, तुम्हें हरदम लिखते हैं
जफ़ा मिली दुनिया से इतनी
इसको भी जानम लिखते हैं
apki har rachna adwitiya hoti hai....ye bhi hai
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.. आज सुबीर संवाद सेवा से एक अच्छे ब्लॉग का पता मिला।
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