ये टिपियाने की
खुजली, ऐसे न मिटेगी, आ
मैं तेरी पीठ
खुजाऊँ, तू मेरी पीठ खुजा
किसने भाषा को
तोला, किसने भावों को नापा
कूड़ा कचरा जो
पाया, झट इंटरनेट पर चाँपा
पढ़ने कुछ तो
आएँगें
टिपियाकर भी जाएँगे
दुनिया को
दुनियाभर के, दिनभर दुख दर्द सुना
पढ़ रोज सुबह का पेपर,
फिर गढ़ इक छंद पुराना
बन छंद न भी पाए
तो, बस इंटर खूब दबाना
पल में खेती
कविता की
जोती, बोई औ’
काटी
कुछ खोज शब्द तुक
वाले, फिर कुछ बेतुका मिला
कुछ माल विदेशी लाकर,
देशी कपड़े पहना दे
बातों की बना जलेबी,
सबको भर पेट खिला दे
कर सके न इतना
खर्चा
तो कर मित्रों की
चर्चा
या प्रगतिशील कह कर तू, पिछड़ों का संघ बना
waah !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंVaah ... Majedar ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंbahut sunder kavita
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंआपकी लिखी हुई गजल हमेशा ही बहुत बढ़िया होती हैं.
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