इस चौराहे पर
आज अचानक उसका मिलना
जैसे इंटरनेट पर
आज अचानक उसका मिलना
जैसे इंटरनेट पर
यूँ ही
मिले पाठ्य पुस्तक की रचना
यूँ तो मेरे
मिले पाठ्य पुस्तक की रचना
यूँ तो मेरे
प्रश्नपत्र में
यह रचना भी आई थी, पर
इसके हल से
इसके हल से
कभी न मिलते
मुझको वे मनचाहे नंबर
सुंदर, सरल
सुंदर, सरल
कमाऊ भी था
तुलसी बाबा को हल करना
रचना थी ये
तुलसी बाबा को हल करना
रचना थी ये
मुक्तिबोध की
छोड़ गया पर भूल न पाया
आखिर इस
आखिर इस
चौराहे पर
आकर मैं इससे फिर टकराया
आई होती
आई होती
तभी समझ में
आज न घटती ये दुर्घटना
आज न घटती ये दुर्घटना
कभी कभी जिसको हम इग्नोर कर देतें हैं वही बात प्रश्न बनकर कभी न कभी सामने आकर खड़ी हो जाती है ..बहुत अच्छी रचना ..बधाई धर्मेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार २२ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
जवाब देंहटाएंsundar shabd sanyojan
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