उबलती
धूप माथा चूम मेरा लौट जाती है
सुबह
ही रोज सूरज को मेरी माँ जल चढ़ाती है
कहीं
भी मैं गया पर आजतक भूखा नहीं सोया
मेरी
माँ एक रोटी गाय की हर दिन पकाती है
पसीना
छूटने लगता है सर्दी का यही सुनकर
अभी
भी गाँव में हर साल माँ स्वेटर बनाती है
नहीं
भटका हूँ मैं अब तक अमावस के अँधेरे में
मेरी
माँ रोज चौबारे में एक दीया जलाती है
सदा
ताजी हवा आके भरा करती है मेरा घर
नया
टीका मेरी माँ रोज पीपल को लगाती है
्वाह …………माँ को शत- शत नमन ……सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमनभावन पोस्ट.... हे माँ तुझे प्रणाम ... शत शत नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...माँ को नमन..
जवाब देंहटाएंएक सामायिक और अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंनहीं भटका हूँ मैं अब तक अमावस के अँधेरे में
जवाब देंहटाएंमेरी माँ रोज चौबारे में एक दीया जलाती है
बहुत खूबसूरत गजल ...
उबलती धूप माथा चूम मेरा लौट जाती है
जवाब देंहटाएंसुबह ही रोज सूरज को मेरी माँ जल चढ़ाती है
कहीं भी मैं गया पर आजतक भूखा नहीं सोया
मेरी माँ एक रोटी गाय की हर दिन पकाती है
पसीना छूटने लगता है सर्दी का यही सुनकर
अभी भी गाँव में हर साल माँ स्वेटर बनाती है
नहीं भटका हूँ मैं अब तक अमावस के अँधेरे में
मेरी माँ रोज चौबारे में एक दीया जलाती है
सदा ताजी हवा आके भरा करती है मेरा घर
नया टीका मेरी माँ रोज पीपल को लगाती है