मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

नई कविता : एड्स से मर रहे युवक का बयान

खट्टी मीठी यादें
समय का अचार और मुरब्बा हैं

हमें क्यों बेहूदा लगते हैं वो शब्द
जो हमारी भाषा के शब्दकोश में नहीं होते

प्रेम को महान बनाने के चक्कर में
उसे हिजड़ा बना दिया गया

हिजड़े सारी दुनिया को हिजड़ा बनाना चाहते हैं

मूर्तियाँ सोने का मुकुट पहनकर
भूखे इंसानों को सपने में रोटी दिखाती हैं

भूख से मरता हुआ इंसान कूड़े में फेंकी जूठन भी खाता है

सच अगर कड़वा है
तो उस पर शहद डालने की बजाय
खुद को उसके स्वाद का अभ्यस्त बनाना बेहतर है

अँधेरे कमरे में बंद आदमी
न जिंदा होता है न मुर्दा

क्या मेरे खून में दौड़ते हुए कीड़े
तुम्हारा प्यार भी खा जाएँगें

ईश्वर से चमत्कार की आशा करना
खुद को मीठा जहर देने की तरह है

शायद मेरे मर जाने से दुनिया ज्यादा बेहतर हो जाएगी

तुमने बनाए कुछ नियम और दूर खड़े हो गए
कैसे भगवान हो तुम!

3 टिप्‍पणियां:

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