है मरना डूब के मेरा मुकद्दर भूल जाता हूँ
तेरी आँखों में भी सागर है अक्सर भूल जाता हूँ
ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी तिलिस्मी है
मैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ
हमारे प्यार में इतना तो नश्शा अब भी बाकी है
पहुँचकर घर के दरवाजे पे दफ़्तर भूल जाता हूँ
तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
मैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ
न जीता हूँ न मरता हूँ तेरी आदत लगी ऐसी
दवा हो या जहर दोनों मैं लाकर भूल जाता हूँ
दवा की दया
जवाब देंहटाएंऔर जहर का कहर
याद रहे--
सज्जन को |
सादर ||
तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
जवाब देंहटाएंमैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ
वाह ... बच्चों में ही भगवान बसते हैं ... सुंदर गजल
तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
जवाब देंहटाएंमैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ
बहुत सुंदर गजल ,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी तिलिस्मी है
जवाब देंहटाएंमैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ ...
जियो धर्मेन्द्र जी ... कितने बड़े सच कों उतारा है इस शेर में ... भाई पूरी गज़ल लाजवाब है ... हर शेर खिलता हुवा ...
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जवाब देंहटाएंमित्रवर धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
सस्नेह नमस्कार !
आपकी रचनाएं हमेशा प्रभावित करती हैं … आभार !
तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
मैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ
वाह … वाऽऽहऽऽ… !
निःसंदेह लाजवाब !!
(इस ग़ज़ल के साथ-साथ पिछले दिनों न देखी जा सकी थी, वो कुछ पुरानी पोस्ट्स देखी है अभी …
…तमाम रचनाओं के लिए बधाई !)
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन होता रहे, यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…