लगभग एक साथ खोजे गए
नाभिकीय विखंडन और नाभिकीय संलयन
मगर हमने सबसे पहले सीखा
विखंडन की ऊर्जा का इस्तेमाल
किंतु बचे रहने और इंसान बने रहने के लिए
हमें जल्दी ही सीखना होगा
संलयन की ऊर्जा का सही इस्तेमाल
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
गहन वैज्ञानिक रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
शुभकामनाये ||
बहुत खूब, एक प्यारी विज्ञान कविता. परन्तु मेरे भाई विखंडन के लिए चाहिए थी थोड़ी ऊर्जा और संलय के चाहिए होगी अत्यधिक ऊर्जा. आज जब हमारे पास इतनी ऊर्जा नहीं बची जो दांपत्य और संयुक्त परिवार को जोड़ कर बड़ा नाभिक बना सके तो संलयन की यह आशा ...कठिन है. लेकिन ख़ुशी हुई यह जानकर की संलयन का महत्वा लोगो मथने लगा है.
जवाब देंहटाएंमै एक चीज और बताऊँ हमारी संस्कृति में देवी दुर्गा की जो अवधारणा है वह संलयन ही है. छोटे-छोटे देव नाभिकों का संलयन. समाज से कुरीतियों, भ्रष्टाचार और दुराचार से लड़ने का इससे अच्छा कोई दूसरा उपाय नहीं. समाज दर्शन इसी सिद्धांत को 'संघे शक्ति कलियुगे' कहता है. बधाई ढेर सारी बधाई इस रचनात्मक सोच और सैद्धांतिक वैज्ञानिक के लिए.