मच्छर आवाज़ उठाता है
‘सिस्टम’ ताली बजाकर मार देता है
और ‘मीडिया’ को दिखाता है भूखे मच्छर का खून
अपना खून कहकर
मच्छर बंदूक उठाते हैं
‘सिस्टम’ ‘मलेरिया’ ‘मलेरिया’ चिल्लाता है
और सारे घर में जहर फैला देता है
अंग बागी हो जाते हैं
‘सिस्टम’ सड़न पैदा होने का डर दिखालाता है
बागी अंग काटकर जला दिए जाते हैं
उनकी जगह तुरंत उग आते हैं नये अंग
‘सिस्टम’ के पास नहीं है खून बनाने वाली मज्जा
जिंदा रहने के लिए वो पीता है खून
जिसे हम ‘डोनेट’ करते हैं अपनी मर्जी से
हर बीमारी की दवा है
‘सिस्टम’ के पास
हर नया विषाणु इसके प्रतिरक्षा तंत्र को और मजबूत करता है
‘सिस्टम’ अजेय है
‘सिस्टम’ सारे विश्व पर राज करता है
क्योंकि ये पैदा हुआ था
दुनिया जीतने वाली जाति के
सबसे तेज और कमीने दिमागों में
कल 13/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
satya ko ptakat karti prabhavi rachna
जवाब देंहटाएंयही कहूँगा की मच्छरों जीने दो ! बेहतरीन और यथार्थपरक कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत गहन कटाक्ष
जवाब देंहटाएंकिसी ने तो राज करना ही था. हाँ 'मच्छरों' को भी सलीके से जीने का हक़ है. इंसानों के तौर पर उनके हक़ पहले से कुछ बेहतर हैं. खूब लिखा है.
जवाब देंहटाएंसिस्टम के पास हर मर्ज की दवा है सच में बड़ा ढीठ किस्म का सिस्टम है ये किसी कमीने दिमाग की उपज ....बहुत सही जबरदस्त कटाक्ष
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सटीक रचना..
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