बिना किसी बाहरी बल के
लोलक के दोलन का आयाम बढ़ता ही जा रहा था
लवण और पानी मिलाने पर अम्ल और क्षार बना रहे थे
आवृत्तियाँ न मिलने पर भी अनुनाद हो रहा था
गुरुत्वाकर्षण बल दो पिंडों के बीच की दूरी पर निर्भर नहीं था
निर्वात में ध्वनि की तरंगें गूँज रही थीं
जब तुम कुर्सी पर बैठकर ‘आब्जर्वेशन’ लिख रहीं थीं
और मैं तुम्हारे बगल ‘प्रैक्टिकल बुक’ थामे खड़ा था
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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और आंदोलित हो उठा स्थूल दिमाग --
जवाब देंहटाएंमिलता हूँ एक सामान्य समय-काल के बाद
परखनली में दीखता, तात्विक प्रेम प्रसाद ।
जवाब देंहटाएंदहन-गहन लौ कीजिये, सरस द्रव्य के बाद ।
सरस द्रव्य के बाद, देखते रहो रिएक्शन ।
धुवाँ जलाये आँख, दूर कर दीजै तत्क्षण ।
और अगर स्वादिष्ट, मिष्ट सी आये ख़ुश्बू ।
फील्ड वर्क प्रोजेक्ट, गाड़ दे तम्बू-बम्बू ।।
गुरुवर के आदेश से , मंच रहा मैं साज ।
जवाब देंहटाएंनिपटाने दिल्ली गये, एक जरुरी काज ।
एक जरुरी काज, बधाई अग्रिम सादर ।
मिले सफलता आज, सुनाएँ जल्दी आकर ।
रविकर रहा पुकार, कृपा कर बंदापरवर ।
अर्जी तेरे द्वार, सफल हों मेरे गुरुवर ।।
शनिवार चर्चा मंच 842
आपकी उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत की गई है |
charcamanch.blogspot.com
साइंस प्राकृतिक नियमों के अनुसार चलती है - मन अंतःप्रकृति के :एक दूसरे को प्रभावित करें तो क्या् आश्चर्य!
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