गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

कविता : विज्ञान के विद्यार्थी की प्रेम कविता

बिना किसी बाहरी बल के
लोलक के दोलन का आयाम बढ़ता ही जा रहा था

लवण और पानी मिलाने पर अम्ल और क्षार बना रहे थे

आवृत्तियाँ न मिलने पर भी अनुनाद हो रहा था

गुरुत्वाकर्षण बल दो पिंडों के बीच की दूरी पर निर्भर नहीं था

निर्वात में ध्वनि की तरंगें गूँज रही थीं

जब तुम कुर्सी पर बैठकर ‘आब्जर्वेशन’ लिख रहीं थीं
और मैं तुम्हारे बगल ‘प्रैक्टिकल बुक’ थामे खड़ा था

4 टिप्‍पणियां:

  1. और आंदोलित हो उठा स्थूल दिमाग --
    मिलता हूँ एक सामान्य समय-काल के बाद

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  2. परखनली में दीखता, तात्विक प्रेम प्रसाद ।
    दहन-गहन लौ कीजिये, सरस द्रव्य के बाद ।

    सरस द्रव्य के बाद, देखते रहो रिएक्शन ।
    धुवाँ जलाये आँख, दूर कर दीजै तत्क्षण ।

    और अगर स्वादिष्ट, मिष्ट सी आये ख़ुश्बू ।
    फील्ड वर्क प्रोजेक्ट, गाड़ दे तम्बू-बम्बू ।।

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  3. गुरुवर के आदेश से , मंच रहा मैं साज ।
    निपटाने दिल्ली गये, एक जरुरी काज ।

    एक जरुरी काज, बधाई अग्रिम सादर ।
    मिले सफलता आज, सुनाएँ जल्दी आकर ।

    रविकर रहा पुकार, कृपा कर बंदापरवर ।
    अर्जी तेरे द्वार, सफल हों मेरे गुरुवर ।।

    शनिवार चर्चा मंच 842
    आपकी उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत की गई है |

    charcamanch.blogspot.com

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  4. साइंस प्राकृतिक नियमों के अनुसार चलती है - मन अंतःप्रकृति के :एक दूसरे को प्रभावित करें तो क्या् आश्चर्य!

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।