आँखें बंद पड़ीं गीजर की फिर भी
दहता है पानी
उसके तन की तपिश न पूछो कैसे सहता
है पानी
नाजुक होठों को छूने तक भूखा रहता बेचारा
जब तक नहीं नहा लेती वो प्यासा
रहता है पानी
उसके बालों से बिछुए तक जाने में
चुप रहता फिर
कल की आशा में सारा दिन कलकल कहता
है पानी
उस रेशमी छुवन के पीछे हुआ इस कदर दीवाना
सूरज रोज बुलाए फिर भी नीचे बहता
है पानी
बाधाएँ जितनी ज्यादा हों उतना ऊपर
चढ़ जाता
हार न माने इश्क अगर सच्चा हो कहता
है पानी
बहुत बढ़िया भाई जी ।।
जवाब देंहटाएंkya bat....utaam .....badhai
जवाब देंहटाएं