जहाँ जाओ जुनून मिलता है
घर पहुँचकर सुकून मिलता है
न्याय मजलूम को नहीं मिलता
हर सड़क पर कनून मिलता है
अब तो करती है रुत भी घोटाले
मार्च के बाद जून मिलता है
सब की नस नस में आजकल पानी
और आँखों में खून मिलता है
सूर्य से लड़ रहा हूँ दिन भर तब
रात कुछ पल को मून मिलता है
झोपड़ी से न पूछिए कैसे
तेल, रोटी व नून मिलता है
कहीं आटा भी मिल रहा आधा
कहीं भत्ता भी दून मिलता है
रब को गढ़ते थे हाथ जो उनमें
आज खैनी व चून मिलता है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
waah! bahut khub....
जवाब देंहटाएंQabile Tareef
जवाब देंहटाएंDhund rahe the bahut roj se kisi "sajjan" ko, aaj tammana puri hui
Zuda hai anjaz-e bayan aapka, hasrat mere dil ki aaj gururi hai.
sachchai bayan kar rahi hai is kavita ke ek ek shabd.....waaaaaaaaaah!!!!!!
जवाब देंहटाएंशसक्त व समर्थ गज़लकार भाई धर्मेंन्द्र कुमार सिंह सज्जन को सतशः बधाई
जवाब देंहटाएंक्या रवानी है.. और शे'र भी बहुत उम्दा..
जवाब देंहटाएंअब तो करती है रुत भी घोटाले
मार्च के बाद जून मिलता है