ये देवताओं और राक्षसों का देश है
यहाँ गान्धारी न्याय करती है
न्याय का देवता किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होता
तीन तरह के अम्लों का गठबंधन
राज करता है
सेना के पास
खद्दर में लिपटा झूठ का गोला बारूद है
सेनापति को सच बोलने के जुर्म में फाँसी दी जाती है
साहित्यिक कुँए का मेढक
सारी दुनिया घूमकर वापस कुँए में आ जाता है
आइने के सामने आइना रखते ही
वो घबराकर झूठ बोलने लगता है
धरती का मुँह देख देखकर
सूरज अपनी आग काबू में रखता है
शब्द एक दूसरे से जुड़कर तलवार बनाते हैं
विलोम शब्दों का कत्ल करने के लिए
ये देवताओं और राक्षसों का देश है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
शनिवार, 31 मार्च 2012
मंगलवार, 27 मार्च 2012
कविता : ब्रह्मांड और समय बनाम महाकाव्य और उपन्यास
ब्रह्मांड कागज़ का गुब्बारा है
ऊर्जा और द्रव्य अक्षर हैं
हम सब शब्द हैं
कागज़ का गुब्बारा फूल रहा है
स्वर से अलग व्यंजन का अस्तित्व नहीं होता
समय बदल रहा है शब्दों के अर्थ
पैदा हो रहे हैं नए महाकाव्य और उपन्यास
कुछ भी नष्ट नहीं होता
शब्द अक्षरों में टूटकर करते हैं नई नई यात्राएँ
कुछ शब्दों को होता है होने का अहसास
समय हँसता है
फट जाएगा एक दिन कागज़ का गुब्बारा
नए गुब्बारे पर नया समय फिर से लिखेगा
महाकाव्य और उपन्यास
इस बात से बेखबर
कि ये सारे महाकाव्य और उपन्यास
पहले भी लिखे जा चुके हैं
ऊर्जा और द्रव्य अक्षर हैं
हम सब शब्द हैं
कागज़ का गुब्बारा फूल रहा है
स्वर से अलग व्यंजन का अस्तित्व नहीं होता
समय बदल रहा है शब्दों के अर्थ
पैदा हो रहे हैं नए महाकाव्य और उपन्यास
कुछ भी नष्ट नहीं होता
शब्द अक्षरों में टूटकर करते हैं नई नई यात्राएँ
कुछ शब्दों को होता है होने का अहसास
समय हँसता है
फट जाएगा एक दिन कागज़ का गुब्बारा
नए गुब्बारे पर नया समय फिर से लिखेगा
महाकाव्य और उपन्यास
इस बात से बेखबर
कि ये सारे महाकाव्य और उपन्यास
पहले भी लिखे जा चुके हैं
सोमवार, 26 मार्च 2012
क्षणिका : सूरज
धरती के लिए सूरज देवता है
उसकी चमक, उसका ताप
जीवन के लिए एकदम उपयुक्त हैं
कभी पूछो जाकर बाकी ग्रहों से
उनके लिए क्या है सूरज?
उसकी चमक, उसका ताप
जीवन के लिए एकदम उपयुक्त हैं
कभी पूछो जाकर बाकी ग्रहों से
उनके लिए क्या है सूरज?
रविवार, 18 मार्च 2012
हास्य ग़ज़ल : उदर में खार बन उगता तुम्हारी माँ का हर व्यंजन
न पक्की छत अगर बनती तो मैं छप्पर बना लेता
जगह देती तो तेरे दिल में अपना घर बना लेता
मैं अक्सर सोचता हूँ इडलियाँ ये देख गालों की
के मौला काश खुद को आज मैं साँभर बना लेता
तुम इतने ध्यान से समझोगी गर मालूम ये होता
मैं अपने आप को एक्ज़ाम का पेपर बना लेता
बता देती के तेरा बाप रखता है दुनाली भी
तो घर के सामने तेरे मैं इक बंकर बना लेता
उदर में खार बन उगता तुम्हारी माँ का हर व्यंजन
न गर मैं सींच दारू से इसे बंजर बना लेता
जगह देती तो तेरे दिल में अपना घर बना लेता
मैं अक्सर सोचता हूँ इडलियाँ ये देख गालों की
के मौला काश खुद को आज मैं साँभर बना लेता
तुम इतने ध्यान से समझोगी गर मालूम ये होता
मैं अपने आप को एक्ज़ाम का पेपर बना लेता
बता देती के तेरा बाप रखता है दुनाली भी
तो घर के सामने तेरे मैं इक बंकर बना लेता
उदर में खार बन उगता तुम्हारी माँ का हर व्यंजन
न गर मैं सींच दारू से इसे बंजर बना लेता
शुक्रवार, 16 मार्च 2012
ग़ज़ल : जब तक नहीं नहा लेती वो प्यासा रहता है पानी
आँखें बंद पड़ीं गीजर की फिर भी
दहता है पानी
उसके तन की तपिश न पूछो कैसे सहता
है पानी
नाजुक होठों को छूने तक भूखा रहता बेचारा
जब तक नहीं नहा लेती वो प्यासा
रहता है पानी
उसके बालों से बिछुए तक जाने में
चुप रहता फिर
कल की आशा में सारा दिन कलकल कहता
है पानी
उस रेशमी छुवन के पीछे हुआ इस कदर दीवाना
सूरज रोज बुलाए फिर भी नीचे बहता
है पानी
बाधाएँ जितनी ज्यादा हों उतना ऊपर
चढ़ जाता
हार न माने इश्क अगर सच्चा हो कहता
है पानी
शुक्रवार, 9 मार्च 2012
ग़ज़ल : जहाँ जाओ जुनून मिलता है
जहाँ जाओ जुनून मिलता है
घर पहुँचकर सुकून मिलता है
न्याय मजलूम को नहीं मिलता
हर सड़क पर कनून मिलता है
अब तो करती है रुत भी घोटाले
मार्च के बाद जून मिलता है
सब की नस नस में आजकल पानी
और आँखों में खून मिलता है
सूर्य से लड़ रहा हूँ दिन भर तब
रात कुछ पल को मून मिलता है
झोपड़ी से न पूछिए कैसे
तेल, रोटी व नून मिलता है
कहीं आटा भी मिल रहा आधा
कहीं भत्ता भी दून मिलता है
रब को गढ़ते थे हाथ जो उनमें
आज खैनी व चून मिलता है
घर पहुँचकर सुकून मिलता है
न्याय मजलूम को नहीं मिलता
हर सड़क पर कनून मिलता है
अब तो करती है रुत भी घोटाले
मार्च के बाद जून मिलता है
सब की नस नस में आजकल पानी
और आँखों में खून मिलता है
सूर्य से लड़ रहा हूँ दिन भर तब
रात कुछ पल को मून मिलता है
झोपड़ी से न पूछिए कैसे
तेल, रोटी व नून मिलता है
कहीं आटा भी मिल रहा आधा
कहीं भत्ता भी दून मिलता है
रब को गढ़ते थे हाथ जो उनमें
आज खैनी व चून मिलता है
सदस्यता लें
संदेश (Atom)