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मंगलवार, 24 जनवरी 2012

ग़ज़ल : यहाँ कोई धरम नहीं मिलता

यहाँ कोई धरम नहीं मिलता
मयकदे में वहम नहीं मिलता

किसी बच्चे ने जान दी होगी
गोश्त यूँ ही नरम नहीं मिलता

आग दिल में नहीं लगी होती
अश्क इतना गरम नहीं मिलता

हथकड़ी सौ सदी पुरानी, पर,
आज हाथों में दम नहीं मिलता

कोई अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता

भूख तड़पा के मारती है पर
कहीं कोई जखम नहीं मिलता

7 टिप्‍पणियां:

  1. ye kah kar to aapne gazab kar diya


    कोई अपना ही बेवफ़ा होगा
    यूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता...........mubaraq !

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  2. कोई अपना ही बेवफ़ा होगा
    यूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता
    waah ...

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  3. आग दिल में नहीं लगी होती
    अश्क इतना गरम नहीं मिलता

    वाह क्या बात है ... बहुत ही कमाल का शेर धर्मेन्द्र जी ...अश्कों की गर्मी का राज़ समझ आ गया आज तो ... सभी शेर लाजवाब हैं सुभान अल्ला ...

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  4. आग दिल में नहीं लगी होती
    अश्क इतना गरम नहीं मिलता......vaah behtreen sher.
    bahut shandar ghazal.

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  5. यथार्थ को ब्यान करती सार्थक एवं बेहद संवेदनशील गजल ....

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