यहाँ कोई धरम नहीं मिलता
मयकदे में वहम नहीं मिलता
किसी बच्चे ने जान दी होगी
गोश्त यूँ ही नरम नहीं मिलता
आग दिल में नहीं लगी होती
अश्क इतना गरम नहीं मिलता
हथकड़ी सौ सदी पुरानी, पर,
आज हाथों में दम नहीं मिलता
कोई अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता
भूख तड़पा के मारती है पर
कहीं कोई जखम नहीं मिलता
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
Bahut sundar....Marmsparshi rachna hai Dharmendra bhai.
जवाब देंहटाएंDharam
बहुत संवेदनशील गज़ल
जवाब देंहटाएंye kah kar to aapne gazab kar diya
जवाब देंहटाएंकोई अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता...........mubaraq !
कोई अपना ही बेवफ़ा होगा
जवाब देंहटाएंयूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता
waah ...
आग दिल में नहीं लगी होती
जवाब देंहटाएंअश्क इतना गरम नहीं मिलता
वाह क्या बात है ... बहुत ही कमाल का शेर धर्मेन्द्र जी ...अश्कों की गर्मी का राज़ समझ आ गया आज तो ... सभी शेर लाजवाब हैं सुभान अल्ला ...
आग दिल में नहीं लगी होती
जवाब देंहटाएंअश्क इतना गरम नहीं मिलता......vaah behtreen sher.
bahut shandar ghazal.
यथार्थ को ब्यान करती सार्थक एवं बेहद संवेदनशील गजल ....
जवाब देंहटाएं