न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
सुना है जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है
न इतना हुस्न दे उसको के रब तू ही मचल जाए
रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
बहुत गीला हुआ आटा, बड़ा ठंढा तवा है, पर
न इतनी आग दे चूल्हे में रब, रोटी ही जल जाए
गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
के जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए
न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
जवाब देंहटाएंन इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
वाह , क्या बात है ..बहुत खूबसूरत गज़ल
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने आपकी पोस्ट " ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंन इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
वाह , क्या बात है ..बहुत खूबसूरत गज़ल
रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
जवाब देंहटाएंकहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
kya baat hai !
वाह!!!
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा... ने आपकी पोस्ट " ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंरहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
kya baat hai !
pratyek pankti par waaaaaaaaaaaaaaah
जवाब देंहटाएं"गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
जवाब देंहटाएंके जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए"
वाह !