न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
सुना है जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है
न इतना हुस्न दे उसको के रब तू ही मचल जाए
रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
बहुत गीला हुआ आटा, बड़ा ठंढा तवा है, पर
न इतनी आग दे चूल्हे में रब, रोटी ही जल जाए
गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
के जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
जवाब देंहटाएंन इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
वाह , क्या बात है ..बहुत खूबसूरत गज़ल
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने आपकी पोस्ट " ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंन इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
वाह , क्या बात है ..बहुत खूबसूरत गज़ल
रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
जवाब देंहटाएंकहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
kya baat hai !
वाह!!!
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा... ने आपकी पोस्ट " ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंरहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
kya baat hai !
pratyek pankti par waaaaaaaaaaaaaaah
जवाब देंहटाएं"गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
जवाब देंहटाएंके जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए"
वाह !