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शनिवार, 7 जनवरी 2012

अमीरी और गरीबी की समीकरणें

इंसान खोज चुका है वे समीकरणें
जो लागू होती हैं अमीरों पर
जिनमें बँध कर चलता है सूर्य
जिनका पालन करती है आकाशगंगा
और जिनके अनुसार इतनी तेजी से
विस्तारित होता जा रहा है ब्रह्मांड
कि एक दिन सारी आकाशगंगाएँ
चली जाएँगी हमारे घटना क्षितिज से बाहर
हमारी पहुँच के परे
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ अनिश्चितताएँ नगण्य हैं

खोजे जा चुके हैं वे नियम भी
जिनमें बँध कर जीता है गरीब
जिनसे पता चल जाता है परमाणुओं का संवेग
इलेक्ट्रानों की स्थिति, वितरण और विवरण
रेडियो सक्रियता का कारण
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ चारों ओर बिखरी पड़ीं हैं अनिश्चितताएँ

पर जैसे ही हम मिलाते हैं
गरीबों और अमीरों की समीकरणों को एक साथ
फट जाता है सूर्य
घूमना बंद कर देती है आकाशगंगा
टूटने लग जाते हैं दिक्काल के धागे
हर तरफ फैल जाती है अव्यवस्था
किसी गुप्त स्थान से आने लगती हैं आवाजें
“ऐसा कोई नियम नहीं बन सकता
जो अमीरों और गरीबों पर एक साथ लागू हो सके
हमारे नियम अलग हैं और अलग ही रहेंगे”

कसमसाने लगते हैं
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत भाग को घेरने वाले
काली ऊर्जा और काला द्रव्य

मगर इन आवाजों के बावजूद
सीईआरएन में धमाधम भिड़ते हैं शीशे के परमाणु
खोजा लिया जाता है
प्रकाश की गति से ज्यादा तेज चलने वाला न्युट्रिनो
पकड़ा जाने ही वाला है हिग्स बोसॉन
लोगों का गुस्सा उतरने लगा है सड़कों पर
संसद का एक सदन पार चुका है लोकपाल

धीरे धीरे खोजे जा रहे हैं
दो परस्पर विरोधी समीकरणों को जोड़ने वाले
छुपकर बैठे धागे

दूर कहीं मुस्कुराता हुआ ईश्वर
निश्चित कर रहा है समय
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत काले हिस्से के सफेद होने का

13 टिप्‍पणियां:

  1. पर जैसे ही हम मिलाते हैं
    गरीबों और अमीरों की समीकरणों को एक साथ
    फट जाता है सूर्य
    घूमना बंद कर देती है आकाशगंगा
    टूटने लग जाते हैं दिक्काल के धागे
    हर तरफ फैल जाती है अव्यवस्था
    किसी गुप्त स्थान से आने लगती हैं आवाजें
    “ऐसा कोई नियम नहीं बन सकता
    जो अमीरों और गरीबों पर एक साथ लागू हो सके
    हमारे नियम अलग हैं और अलग ही रहेंगे”
    bilkul sahi kaha aur zabardast kaha

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  2. "दूर कहीं मुस्कुराता हुआ ईश्वर
    निश्चित कर रहा है समय
    ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत काले हिस्से के सफेद होने का"

    विज्ञान और साहित्य का सुंदर मेल है आपकी प्रस्तुति में। बधाई !

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  3. कल 09/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. धर्मेन्द्र जी, आपका काव्यमय गणित...बहुत खूब!
    ...धीरे धीरे खोजे जा रहे हैं
    दो परस्पर विरोधी समीकरणों को जोड़ने वाले
    छुपकर बैठे धागे...
    ...लोगों का गुस्सा उतरने लगा है सड़कों पर
    संसद का एक सदन पार चुका है लोकपाल...

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  5. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  6. बहुत प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति...

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  7. गणित,भौतिकी और समाजशास्त्र के त्रिभुज का अनुपम प्रमेय.

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. वैज्ञानिक सन्दर्भों ने रचना को विशिष्ट अर्थ दिए हैं! सशक्त अभिव्यक्ति!

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