पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध
मत बाँधो उसके गम में तुम बाँध आँसुओं का
बिना सहारे के बनता जो, ढह जाता है बाँध
फाड़ डालती पर्वत की छाती चंचल नदिया
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध
पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध
पर्त पर्त बनते देखा है इसको इसीलिए
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध
यूँ ही ग़ज़ल नहीं बनते कंकड़, पत्थर, मिट्टी,
तेरा मेरा जन्मों का कोई नाता है बाँध
adbhut shabd sanyojan...wah
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अना जी
हटाएंपत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
जवाब देंहटाएंतब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध
बहुत खूब ..खूबसूरत गज़ल ..
शुक्रिया संगीता जी
हटाएंधरम प्रा जी तुस्सी ग्रेट हो यार, आप की कल्पना शक्ति अद्भुत है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नवीन जी
हटाएंबिल्कुल नई सोच नयी रदीफ !! वाह !!! वाह !!
जवाब देंहटाएंपानी पर पत्थर तैरेंगे तुममे है वह बात
धर्म!!कहे तो पानी पर भी बँध जाता है बाँध -मयंक
शुक्रिया मयंक जी
हटाएंबिल्कुल नई सोच नयी रदीफ !! वाह !!! वाह !!
जवाब देंहटाएंपानी पर पत्थर तैरेंगे तुममे है वह बात
धर्म!!कहे तो पानी पर भी बँध जाता है बाँध -मयंक
पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
जवाब देंहटाएंदरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध
बिल्कुल नए रदीफ को लेकर लिखी इस ग़ज़ल में अहसासों की भी ताजगी है।
शुक्रिया महेन्द्र जी
हटाएंपत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
जवाब देंहटाएंतब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध
वाह!
शुक्रिया अनुपमा जी
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