कविता लिखना
जैसे चाय बनाना
कभी चायपत्ती ज्यादा हो जाती है
कभी चीनी, कभी पानी, कभी दूध
कभी तुलसी की पत्तियाँ डालना भूल जाता हूँ
कभी इलायची, कभी अदरक
मगर अच्छी बात ये है
कि ज्यादातर लोग भूल चुके हैं
कि चाय में तुलसी की पत्तियाँ
अदरक और इलायची भी पड़ते हैं
कुछ को ज्यादा चायपत्ती अच्छी लगती है
तो कुछ को कम दूध
और मेरा काम चल जाता है
चाय बेकार नहीं जाती
कोई न कोई पी ही लेता है
मगर कभी तो मिलेगा
मुझे इन सब का सही अनुपात
कभी तो बनाऊँगा मैं ऐसी चाय
जो जुबान को छूते ही
थोड़ी देर के लिए ही सही
इंसान को उसकी सुध बुध भुला दे
और अगर सही अनुपात नहीं भी मिला
तो भी मुझे यह संतोष तो होगा
कि मैंने अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखी
शायद मेरी किस्मत में ही नहीं था
ऐसे स्वाद वाली चाय बनाना
पर मैं चाय बनाना नहीं छोडूँगा
क्योंकि चाय चाहे जैसी भी बने
इंसान को तरोताजा होने के लिए
चाय की जरूरत हमेशा रहेगी
और हमेशा रहेगी तलाश
एक सुध बुध भुला देने वाले स्वाद की
एक अविस्मरणीय कविता की
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
इतनी अच्छी तो बना लेते हैं भाई धर्मेन्द्र जी. मुझे तो ये वाली भी बहुत टेस्टी लग रही है. खुशी इस बात की है कि आप छन्नी वाली चाय पत्ती दुबारा तिबारा यूज नही करते हैं और कड़क जायकेदार चाय बना के परोसते हैं. अब जिसे ढाबे वाली चालू चाय पीनी हो भाई वो धर्मेन्द्र जी से तो इसकी उम्मीद न ही करे.
जवाब देंहटाएंSheshdhar Tiwari ने आपकी पोस्ट " कविता लिखना जैसे चाय बनाना " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी तो बना लेते हैं भाई धर्मेन्द्र जी. मुझे तो ये वाली भी बहुत टेस्टी लग रही है. खुशी इस बात की है कि आप छन्नी वाली चाय पत्ती दुबारा तिबारा यूज नही करते हैं और कड़क जायकेदार चाय बना के परोसते हैं. अब जिसे ढाबे वाली चालू चाय पीनी हो भाई वो धर्मेन्द्र जी से तो इसकी उम्मीद न ही करे.
एक सुध बुध भुला देने वाले स्वाद की
जवाब देंहटाएंएक अविस्मरणीय कविता की
चाय जो सुध बुध भुला दे और कविता भी ऐसी ही सब कुछ अनुपात में हो ... अच्छी प्रस्तुति
पाठक गण परनाम, सुन्दर प्रस्तुति बांचिये ||
जवाब देंहटाएंघूमो सुबहो-शाम, उत्तम चर्चा मंच पर ||
शुक्रवारीय चर्चा-मंच ||
charchamanch.blogspot.com
वाह आदरणीय धर्मेन्द्र भाई...
जवाब देंहटाएंअलग ही अंदाज की जोरदार रचना है...
सादर बधाई....
एक अविस्मरणीय कविता के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंधरम प्रा जी ये चाय तो बहुत बहुत मस्त मस्त और जबर्दस्त है, आहा चुसकियाँ ले रहा हूँ
जवाब देंहटाएंकविता कहना बजी सतत प्रयास है जो अच्छे से अच्छा होता चला जाता है और पहला अच्छा नहीं था ये पता भी नहीं चल पाता ... बहुत ही कमाल का विषय ले कर रचना बुनी है ... शिक्रिया धर्मेन्द्र जी ..
जवाब देंहटाएंबेहद गंभीर बात बडी संजीदगी से कह दी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंchai to majedar hei ..pina hi padi ji .....
जवाब देंहटाएंबहुत स्वादिष्ट चाय :)
जवाब देंहटाएंबहुत स्वादिष्ट चाय :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
अहा!पहली ही बार में इतनी बढ़िया चाय ....Thankyou...
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