लुटेरों!
तुम्हारी प्रवृत्ति है
कमजोरों को लूटना
जहाँ भी तुम्हें दिखेंगे
हाइड्रोजन परमाणु जैसे कमजोर
तुम अपना आवेश साझा करने के बहाने
उनसे जुड़ोगे
और खींच लोगे उनका आवेश भी
अपने पास
लुटेरों!
क्या कर सकते हैं तुम्हारा
नियम और कानून
जब ईश्वर ने ही पक्षपात किया है
तुम्हें अतिरिक्त आवेश दिया है
तुम निकाल ही लोगे कोई न कोई रास्ता
लूटने का
क्योंकि तुम जब तक जीवित रहोगे
तुम्हारी प्रवृत्ति नहीं बदलेगी
लुटेरों!
क्यों नहीं हो सकते तुम
आक्सीजन की तरह
क्यों तुम अपना पेट भर जाने के बाद
बचा हुआ आवेश
दूसरे लुटे हुए हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ
साझा नहीं करते
क्यूँ नहीं कायम करते तुम
हाइड्रोजन बंध की तरह
अमीर और गरीब के बीच
एक नया संबंध
जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन ने जन्म लिया
लुटेरों!
यकीन मानो
ऐसा करके तुम पानी की तरह
तरल और सरल हो जाओगे
कई प्यास से मरती सभ्यताओं को
तुम नया जीवन दोगे
यकीन मानो
व्यर्थ है ये अतिरिक्त आवेश
तुम्हारे लिए
लुटेरों!
कर लो ऐसा
वरना रह जाओगे
हाइड्रोजन सल्फाइड की तरह
एक जहरीली गैस बनकर
और सृष्टि रहने तक
लोग घृणा करेंगे
तुम्हारी गंध से भी
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
kya bat hai!!!!!vigyan ko yatharth ke sath jodne ka anootha prayog ap hi kar sakte hai...abhar
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