हवा में तैरते हैं प्रेम-गीत
धूप लेकर आती है रेशमी छुवन
रात सजती है रोज नई दुल्हन सी
गेंदे के फूल से उठती है गुलाब की खुशबू
साँस लेने लगती हैं मंदिर की मूर्तियाँ
कण कण में दिखने लगता है ईश्वर
हर पल मन शुक्रिया अदा करता है ईश्वर का
मानव तन देने के लिए
सगाई के बाद और शादी से पहले
नवयुवकों!
इस समय की हर बूँद को
यादों के घड़े में इकट्ठा करके रखना
क्योंकि इस समय की हर बूँद
वक्त गुजरने के साथ
बनती जाती है दुनिया की सबसे नशीली शराब
जो काम आती है उस समय
जब ऊब होने लगती है
समय से
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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सोमवार, 31 अक्टूबर 2011
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011
कविता : लुटेरों
लुटेरों!
तुम्हारी प्रवृत्ति है
कमजोरों को लूटना
जहाँ भी तुम्हें दिखेंगे
हाइड्रोजन परमाणु जैसे कमजोर
तुम अपना आवेश साझा करने के बहाने
उनसे जुड़ोगे
और खींच लोगे उनका आवेश भी
अपने पास
लुटेरों!
क्या कर सकते हैं तुम्हारा
नियम और कानून
जब ईश्वर ने ही पक्षपात किया है
तुम्हें अतिरिक्त आवेश दिया है
तुम निकाल ही लोगे कोई न कोई रास्ता
लूटने का
क्योंकि तुम जब तक जीवित रहोगे
तुम्हारी प्रवृत्ति नहीं बदलेगी
लुटेरों!
क्यों नहीं हो सकते तुम
आक्सीजन की तरह
क्यों तुम अपना पेट भर जाने के बाद
बचा हुआ आवेश
दूसरे लुटे हुए हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ
साझा नहीं करते
क्यूँ नहीं कायम करते तुम
हाइड्रोजन बंध की तरह
अमीर और गरीब के बीच
एक नया संबंध
जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन ने जन्म लिया
लुटेरों!
यकीन मानो
ऐसा करके तुम पानी की तरह
तरल और सरल हो जाओगे
कई प्यास से मरती सभ्यताओं को
तुम नया जीवन दोगे
यकीन मानो
व्यर्थ है ये अतिरिक्त आवेश
तुम्हारे लिए
लुटेरों!
कर लो ऐसा
वरना रह जाओगे
हाइड्रोजन सल्फाइड की तरह
एक जहरीली गैस बनकर
और सृष्टि रहने तक
लोग घृणा करेंगे
तुम्हारी गंध से भी
तुम्हारी प्रवृत्ति है
कमजोरों को लूटना
जहाँ भी तुम्हें दिखेंगे
हाइड्रोजन परमाणु जैसे कमजोर
तुम अपना आवेश साझा करने के बहाने
उनसे जुड़ोगे
और खींच लोगे उनका आवेश भी
अपने पास
लुटेरों!
क्या कर सकते हैं तुम्हारा
नियम और कानून
जब ईश्वर ने ही पक्षपात किया है
तुम्हें अतिरिक्त आवेश दिया है
तुम निकाल ही लोगे कोई न कोई रास्ता
लूटने का
क्योंकि तुम जब तक जीवित रहोगे
तुम्हारी प्रवृत्ति नहीं बदलेगी
लुटेरों!
क्यों नहीं हो सकते तुम
आक्सीजन की तरह
क्यों तुम अपना पेट भर जाने के बाद
बचा हुआ आवेश
दूसरे लुटे हुए हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ
साझा नहीं करते
क्यूँ नहीं कायम करते तुम
हाइड्रोजन बंध की तरह
अमीर और गरीब के बीच
एक नया संबंध
जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन ने जन्म लिया
लुटेरों!
यकीन मानो
ऐसा करके तुम पानी की तरह
तरल और सरल हो जाओगे
कई प्यास से मरती सभ्यताओं को
तुम नया जीवन दोगे
यकीन मानो
व्यर्थ है ये अतिरिक्त आवेश
तुम्हारे लिए
लुटेरों!
कर लो ऐसा
वरना रह जाओगे
हाइड्रोजन सल्फाइड की तरह
एक जहरीली गैस बनकर
और सृष्टि रहने तक
लोग घृणा करेंगे
तुम्हारी गंध से भी
मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011
कविता : घटना क्षितिज
समय
हम दोनों को बहा ले गया है
एक दूसरे के घटना क्षितिज (event horizon) के पार
अब हमारे साथ घटने वाली घटनाएँ
एक दूसरे को प्रभावित नहीं कर सकतीं
यह जानने का अब हमारे तुम्हारे पास कोई जरिया नहीं बचा
कि कैसी हो मेरे बिना तुम
और तुम्हारे बिना मैं
अब अगर हम महसूस कर सकें
एक दूसरे का दर्द
बिना सूचनाओं के आदान प्रदान के
तब समझना
कि जो संबंध हममें और तुममें था
वह कोई आकर्षण बल नहीं
बल्कि एक क्वांटम जुड़ाव (quantum entanglement) था
जो जुड़ गया था
ब्रह्मांड में हमारी उत्पत्ति के साथ ही
और जिसे समय भी खत्म नहीं कर सकता
यदि ऐसा हुआ
तब समझना
कि हमें फिर मिलने से कोई नहीं रोक सकता
हमारा मिलना
केवल समय की बात है
और समय बीतने के साथ ही
बढ़ती जा रही है
हमारे मिलन की संभावना
हम दोनों को बहा ले गया है
एक दूसरे के घटना क्षितिज (event horizon) के पार
अब हमारे साथ घटने वाली घटनाएँ
एक दूसरे को प्रभावित नहीं कर सकतीं
यह जानने का अब हमारे तुम्हारे पास कोई जरिया नहीं बचा
कि कैसी हो मेरे बिना तुम
और तुम्हारे बिना मैं
अब अगर हम महसूस कर सकें
एक दूसरे का दर्द
बिना सूचनाओं के आदान प्रदान के
तब समझना
कि जो संबंध हममें और तुममें था
वह कोई आकर्षण बल नहीं
बल्कि एक क्वांटम जुड़ाव (quantum entanglement) था
जो जुड़ गया था
ब्रह्मांड में हमारी उत्पत्ति के साथ ही
और जिसे समय भी खत्म नहीं कर सकता
यदि ऐसा हुआ
तब समझना
कि हमें फिर मिलने से कोई नहीं रोक सकता
हमारा मिलना
केवल समय की बात है
और समय बीतने के साथ ही
बढ़ती जा रही है
हमारे मिलन की संभावना
शनिवार, 8 अक्टूबर 2011
कविता : मैं देख रहा हूँ
मैं खड़ा हूँ
कृष्ण विवर (black hole) के घटना क्षितिज (event horizon) के ठीक बाहर
मुझे रोक रक्खा है किसी अज्ञात बल ने
और मैं देख रहा हूँ
धरती पर समय को तेजी से भागते हुए
मैं देख रहा हूँ
रंग, रूप, वंश, धन,
जाति, धर्म, देश, तन,
बुद्धि, मृत्यु, समय
सारी सीमाओं को मिटते हुए
मैं देख रहा हूँ
सारी सीमाएँ तोड़कर
मानवता के विराट होते अस्तित्व को
इतना विराट
कि धरती की बड़ी से बड़ी समस्या
इसके सामने अस्तित्वहीन हो गई है
मैं देख रहा हूँ
सूरज को धीरे धीरे ठंढा पड़ते
और इंसानों को दूसरा सौरमंडल तलाशते
मैं देख रहा हूँ
आकाशगंगा के हर ग्रह पर
इंसानी कदमों के निशान बनते
मैं देख रहा हूँ
उत्तरोत्तर विस्तारित होते
दिक्काल (space and time) के धागों को टूटते हुए
ब्रह्मांड की इस चतुर्विमीय (four dimensional) चादर को फटते हुए
और
इंसानों को दिक्काल में एक सुरंग बनाते हुए
जो जोड़ रही है अपने ब्रह्मांड को
एक नए समानांतर ब्रह्मांड (parallel universe) से
जहाँ जीवन की संभावनाएँ
अभी पैदा होनी शुरू ही हुई हैं
मैं देख रहा हूँ
इस ब्रह्मांड के नष्ट हो जाने पर भी
इंसान जिंदा है
और जिंदा है इंसानियत
अपने संपूर्ण अर्जित ज्ञान के साथ
एक नए ब्रह्मांड में
मैं देख रहा हूँ
एक सपना
कृष्ण विवर (black hole) के घटना क्षितिज (event horizon) के ठीक बाहर
मुझे रोक रक्खा है किसी अज्ञात बल ने
और मैं देख रहा हूँ
धरती पर समय को तेजी से भागते हुए
मैं देख रहा हूँ
रंग, रूप, वंश, धन,
जाति, धर्म, देश, तन,
बुद्धि, मृत्यु, समय
सारी सीमाओं को मिटते हुए
मैं देख रहा हूँ
सारी सीमाएँ तोड़कर
मानवता के विराट होते अस्तित्व को
इतना विराट
कि धरती की बड़ी से बड़ी समस्या
इसके सामने अस्तित्वहीन हो गई है
मैं देख रहा हूँ
सूरज को धीरे धीरे ठंढा पड़ते
और इंसानों को दूसरा सौरमंडल तलाशते
मैं देख रहा हूँ
आकाशगंगा के हर ग्रह पर
इंसानी कदमों के निशान बनते
मैं देख रहा हूँ
उत्तरोत्तर विस्तारित होते
दिक्काल (space and time) के धागों को टूटते हुए
ब्रह्मांड की इस चतुर्विमीय (four dimensional) चादर को फटते हुए
और
इंसानों को दिक्काल में एक सुरंग बनाते हुए
जो जोड़ रही है अपने ब्रह्मांड को
एक नए समानांतर ब्रह्मांड (parallel universe) से
जहाँ जीवन की संभावनाएँ
अभी पैदा होनी शुरू ही हुई हैं
मैं देख रहा हूँ
इस ब्रह्मांड के नष्ट हो जाने पर भी
इंसान जिंदा है
और जिंदा है इंसानियत
अपने संपूर्ण अर्जित ज्ञान के साथ
एक नए ब्रह्मांड में
मैं देख रहा हूँ
एक सपना
बुधवार, 5 अक्टूबर 2011
ग़ज़ल : अच्छे बच्चे सब खाते हैं
अच्छे बच्चे सब खाते हैं
कहकर जूठन पकड़ाते हैं
कर्मों से दिल छलनी कर वो
बातों से फिर बहलाते हैं
खत्म बुराई कैसे होगी
अच्छे जल्दी मर जाते हैं
जीवन मेले में सच रोता
चल उसको गोदी लाते हैं
कैसे समझाऊँ आँखों को
आँसू इतना क्यूँ आते हैं
कह तो देते हैं कुछ पागल
पर कितने सच सह पाते हैं
कहकर जूठन पकड़ाते हैं
कर्मों से दिल छलनी कर वो
बातों से फिर बहलाते हैं
खत्म बुराई कैसे होगी
अच्छे जल्दी मर जाते हैं
जीवन मेले में सच रोता
चल उसको गोदी लाते हैं
कैसे समझाऊँ आँखों को
आँसू इतना क्यूँ आते हैं
कह तो देते हैं कुछ पागल
पर कितने सच सह पाते हैं
रविवार, 2 अक्टूबर 2011
ग़ज़ल : एक ऐसा भी करीबी यार होना चाहिए
एक ऐसा भी करीबी यार होना चाहिए
आइना लेकर खड़ा हर बार होना चाहिए
घी अकेला क्या करेगा आग के बिन होम में
है ग़ज़ल तो भाव का शृंगार होना चाहिए
कह रहे हैं छंद तुलसी, सूर, मीरा के सदा
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए
लाख हो खुशबू चमन में भूख मिट पाती नहीं
कुछ गुलों को भी यहाँ फलदार होना चाहिए
इस कदर बदबू सियासत से उठे लगता यही
हर सियासतदाँ यहाँ बीमार होना चाहिए
टूटटर अब खून के रिश्ते हमें सिखला रहे
प्रेम हर संबंध का आधार होना चाहिए
आइना लेकर खड़ा हर बार होना चाहिए
घी अकेला क्या करेगा आग के बिन होम में
है ग़ज़ल तो भाव का शृंगार होना चाहिए
कह रहे हैं छंद तुलसी, सूर, मीरा के सदा
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए
लाख हो खुशबू चमन में भूख मिट पाती नहीं
कुछ गुलों को भी यहाँ फलदार होना चाहिए
इस कदर बदबू सियासत से उठे लगता यही
हर सियासतदाँ यहाँ बीमार होना चाहिए
टूटटर अब खून के रिश्ते हमें सिखला रहे
प्रेम हर संबंध का आधार होना चाहिए