होलोग्राम लगा नकली
कहते सब मैं ही असली
देखी सोने की चिड़िया
कोषों की तबियत मचली
जो कुछ छोड़ा भँवरों ने
उसको खाती है तितली
जिंदा कर देंगे सड़ मत
कह गिद्धों ने लाश छली
मंत्री जी की फ़ाइल से
केवल मँहगाई निकली
कब तक सच मानूँ इसको
“दुर्घटना से देर भली”
अब पानी बदलो ‘सज्जन’
या मर जाएगी मछली
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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अब पानी बदलो ‘सज्जन’||
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
आपको बहुत बहुत बधाई |
धर्मेन्द्र भाई, छोटी बहर पर आप के द्वारा कही गयी एक और खूबसूरत ग़ज़ल। बधाई मित्र। 'तितली', 'गिद्ध-लाश' और 'दुर्घटना' वाले शेर एक्सेप्शनल हैं, जतन कीजिएगा इनका।
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