दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में
मजा नहीं आया तुमको बिरयानी खाने में
पल भर के गुस्से से सारी बात बिगड़ जाती
सदियाँ लग जाती हैं बिगड़ी बात बनाने में
खाओ जी भर लेकिन इसको मत बर्बाद करो
एक लहू की बूँद जली है हर इक दाने में
उनसे नज़रें टकराईं तो जो नुकसान हुआ
आँसू भरता रहता हूँ उसके हरजाने में
अपने हाथों वो देते हैं सुबहो शाम दवा
क्या रक्खा है ‘सज्जन’ अब अच्छा हो जाने में
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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लहू की बूँद जली है हर इक दाने में ||
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अंदाज |
बधाई ||
बहुत खूबसूरत और सार्थक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंउनसे नज़रें टकराईं तो जो नुकसान हुआ
जवाब देंहटाएंआँसू भरता रहता हूँ उसके हरजाने में
क्या बात है बहुत सुंदर ........
धर्मेन्द्र भाई आप की तरफ से एक और अच्छी ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबुलें| धान विषय पर तकरीबन मुसलसल ग़ज़ल है ये, और मकते में आपने बरबस ही हंसा दिया भाई|
जवाब देंहटाएंखाओ जी भर लेकिन इसको मत बर्बाद करो
जवाब देंहटाएंएक लहू की बूँद जली है हर इक दाने में
बहुत संवेदनशील ..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 08 -09 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज ... फ़ोकट का चन्दन , घिस मेरे नंदन
"दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में
जवाब देंहटाएंमजा नहीं आया तुमको बिरयानी खाने में "
बहुत खूब लिखा है
आशा
पल भर के गुस्से से सारी बात बिगड़ जाती
जवाब देंहटाएंसदियाँ लग जाती हैं बिगड़ी बात बनाने में
खाओ जी भर लेकिन इसको मत बर्बाद करो
एक लहू की बूँद जली है हर इक दाने में..यह दो शेर खास तौर से पसंद आये...
बहुत ही सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंमेरा आभार स्वीकार करें