तब
जब सारे आयाम एक बिंदु मात्र थे
समय भी
तब
जब सृष्टि में केवल और केवल घनीभूत ऊर्जा थी
तब भी
जब इस बिंदु का विस्तार होना शुरू हुआ
और समय ने चलना सीखा
तब भी
जब इस अनंततम सूक्ष्म आयतन में
उपस्थित अनंत अनिश्चितताओं ने
ऊर्जा के गुच्छे बनाने शुरू किए
तब भी
जब इन गुच्छों ने घनीभूत होकर
मूलकण बनाने शुरू किए
तब भी
जब मूलकणों ने मिलकर विभिन्न परमाणु बनाए
तब भी
जब इन परमाणुओं ने गुरुत्वाकर्षण के कारण
इकट्ठा होकर प्रारम्भिक गैसों के बादल बनाने शुरू किए
तब भी
जब गुरुत्व से सिकुड़ने के कारण इन गैसों का तापमान बढ़ा
और तारे बने
तब भी
जब दो तारे पास से गुजरे
और उनके आकर्षण से
कुछ द्रव्य इधर उधर बिखरने से ग्रह बने
तब भी
जब एक ग्रह के ठंढ़े होने पर
हाइड्रोजन और आक्सीजन ने मिलकर पानी बनाया
तब भी
जब इस पानी में जीवन पनपा
तब भी
जब जीवन की जटिलता ने बढ़कर मानव बनाया
तब तक
जब तक तुम्हारे और मेरे माता-पिता धरती पर नहीं आए
हम एक थे
और खोए हुए थे इस महामिलन के महाआनंद में
पर ईश्वर कैसे यह बर्दाश्त करता
कि उसके अलावा किसी और को
परमानंद की प्राप्ति हो
बस हमारे तुम्हारे परमाणु
एक एक करके अलग होने लगे
और बनाने लगे दो अलग अलग मानव शरीर
क्या करूँ?
कैसे समझाऊँ लोगों को?
कि जिसे वो दो अलग अलग शरीर कहते हैं
वो केवल दो अलग अलग गुच्छे हैं परमाणुओं के
और उन गुच्छों का
हर परमाणु चाहता है अपने साथी से जुड़ जाना
सांसारिक संबंधों से
हमारे अरबवें हिस्से के परमाणु भी
शायद ही स्पर्श कर पाएँ
एक दूसरे को
बहुत बड़ी सजा है ये मानव होना
जिससे मरने के बाद भी मुक्ति नहीं मिलती
क्योंकि बच्चों के रूप में हमारे कुछ परमाणु
इंसानी रूप में बचे रह जाते हैं
और दुबारा मिलने के लिए करना पड़ता है
समय द्वारा
एक पूरे वंश को मिटाने का इंतजार
शायद इसीलिए हमारे धर्मग्रंथों में
ईश्वर को दंड देने के लिए
उसे मानव बनने का श्राप दिया गया है
शायद इसीलिए
बढ़ते उन्मुक्त संबंधों के
इस युग में अब तक
ईश्वर की हिम्मत नहीं हुई
मानव बनकर जन्म लेने की
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
....एक से बढकर एक पंक्ति, बेहतरीन प्रस्तुति हेतु आभार.
vegyanik kasoti par aadhaarit manav jeevan ki utpatti aur do shareeron ka alag astitv hona.kya khoob samjhaya hai.main to is kavita ko addbhut prayog hi kahungi.atiuttam.
जवाब देंहटाएंइसे सिर्फ एक कविता कहना महा मूर्खता होगी| धरम प्रा जी मैं तो निशब्द हूँ इसे पढ़ कर| काश मैं इस प्रस्तुति को पूरे भारत वर्ष के सामने प्रस्तुत कर पाता|
जवाब देंहटाएंये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं कि दुनिया का सब से बड़ा पुरस्कार भी इस प्रस्तुति के समक्ष बौना लगेगा - मेरे भाई, मेरे दोस्त - इसे सही जगह तक आप को ही पहुंचाना पड़ेगा|
बहरहाल मैं अपनी तरफ से कुछ कोशिश तो जरूर करूंगा|
वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से जीवन की व्याख्या , बधाई की परिधि से बाहर...
जवाब देंहटाएंसृष्टि की उत्पत्ति का
जवाब देंहटाएंपर्त-दर-पर्त विश्लेषण
सृजन का आनंद
मानव का ऐश्वर्य
और
ईश्वर का मानवीकरण
कविता अपने कथ्य और शिल्प में अद्वितीय है।
बधाई धर्मेंद्र जी।
कविता का शिल्प इतना सधा हुआ और सुगठित है कि इसमें व्यक्त विषय एकदम सरल एवं बोधगम्य हुआ है| कविता में काव्यात्मकता के साथ-साथ संप्रेषणीयता भी है। जीवन के जटिल यथार्थ को बहुत सहजता के साथ प्रस्तुत किया है आपने।
जवाब देंहटाएंवास्तव में अद्भुत कविता है ! वैज्ञानिक तथ्यों की इतनी काव्यात्मक और सारगर्भित प्रस्तुति भी हो सकती है यह सचमुच अकल्पनीय है ! मानवीय संबंधों की जटिलता को भी बहुत गहनता के साथ व्याख्यायित किया है ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंएक बार फिर धर्मेन्द्र जी ने अपनी अद्भुत रचना क्षमता का परिचय दिया है. शायद ही हम में से किसी ने भी इस विषय पर कोई कविता पढ़ी होगी. मैं नवीन जी के इस कथन से पूर्णतया सहमत हूँ कि कोई भी सम्मान इस रचना को सराहने के लिए बौना साबित होगा.
जवाब देंहटाएंमैं अधिक से अधिल लोगों तक इस रचना को पहुचाने की कोशिश करूँगा. धर्मेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई.
अद्भुत रचना...बहा ले गई... डुबा ले गई..अहसास करा गई...बहुत बड़ी सजा है ये मानव होना
जवाब देंहटाएं-बधाई स्वीकारें इस रचना के लिए.
बहुत तथ्य परक कविता |एक एक शब्द बोलता है|धर्मेन्द्र जी आपको बहुत बहुत बधाई |नवीन जी सब तक कविता पहुचाने के लिए साधुवाद |
जवाब देंहटाएंआशा
अत्यंत सुन्दर वैज्ञानिक रचना
जवाब देंहटाएंजीव की उत्पत्ति को दर्शाती हुई
एक अद्भुत कविता-बधाई
घोटू
jabardast
जवाब देंहटाएंekdam hat ke
अद्भुत वैज्ञानिक कविता।
जवाब देंहटाएंसचमुच मानव जीवन का सटीक विश्लेषण करती अदभुत कविता !
जवाब देंहटाएंआभार !
वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति , विकास से लेकर मानवीय संबंधों की काव्यात्मक व्याख्या ...वह भी बहुत ही सरल सहज किन्तु भावपूर्ण शब्दों में
जवाब देंहटाएंकथ्य , तथ्य , भाव और शिल्प ...........अद्वितीय
सृष्टि कथा का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप, वह भी काव्य, और सरस काव्य में. सराहनीय, अत्यंत सराहनीय . इस रचना को तो सेव कर लिया है. फिर अवकाश के क्षणों में पढूंगा. मेरी ढेर सारी बधाइयां और शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंवाह! अद्भुद विचार और शब्द विन्याश वाह!
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म वैज्ञानिक दृष्टि से देखा है आपने जीवन को और इतना सहज लिख दिया ... जीवन को आध्यात्मक दृष्टि और व्यवहारिक रूप में भी देखा है इस रचना में .. बहुत ही लाजवाब अद्वितीय रचना है ..
जवाब देंहटाएंवीरेंद्र शर्मा जी द्वारा ई मेल पर भेजी गयी टिप्पणी:-
जवाब देंहटाएंनवीन जी ,यह कविता सृष्टि के जन्म की काव्यात्मक कथा है जिसे हम "बिग बेंग "कहतें हैं .डांस ऑफ़ क्रियेशन कहतें हैं ,शिव का तांडव कहतें हैं .धर्मेन्द्र जी के ब्लॉग तक पहुंचे लेकिन कमेंट्स वाली खिड़की खुली ही नहीं .इस कविता के बाद प्रस्तुत बेहतरीन ग़ज़ल भी पढ़ी जिसका हर अश -आर बे -मिसाल था और तीसरी कविता अनंत ,शून्य या इनफिनिटी को परिभाषित कर रही थी .वह भी मनोयोग से पढ़ी .
वीरू भाई जी का ई मेल आइ डी [email protected]
संजय भास्कर जी, राजेश कुमारी जी, सुनील कुमार जी, महेंद्र वर्मा जी, मनोज कुमार जी, साधना वैद्य जी, समीर लाल जी, आशा जी, घोटू जी, रविकर जी, प्रवीण पांडेय जी, संगीता स्वरूप जी, ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी, सुरेन्द्र सिंह जी, जे पी तिवारी जी, दिगंबर नासवा जी,लियो जी और वीरेंद्र शर्मा जी आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंनवीन भाई और शेषधर तिवारी जी, आपके इस अगाध स्नेह के लिए मैं हृदय से आपका आभार व्यक्त करता हूँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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सब सुधीजनो ने बहुत कुछ कह दिया मै सिर्फ इस रचना पर स्तव्शो सकती हूँ, निशब्द। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंविद्या जी और निर्मला जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी, आपकी प्रस्तुति पढकर धरती की उत्पत्ति की सभी थ्योरी याद आ गयी "special creation theory, big bang theory " और न जाने क्या क्या ....खो गयी उस अजन्मी दुनिया में पर जहाँ तक आप पहुंचे वहाँ तक पहुंचना नामुमकिन है बेहतरीन प्रस्तुति
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