मुझे लगा
वो क्या अहमियत रखता है मेरे लिए
मैं इतना विशाल
और वो
मात्र एक अदना सा शून्य
और मैंने स्वयं को उससे विभाजित कर लिया
परिणाम?
‘खहर’ हो गया हूँ मैं
मुझमें
कुछ भी जोड़ो
कुछ भी घटाओ
कितने से भी गुणा करो
कितने से भी भाग दो
कोई फर्क नहीं पड़ता
अब मैं एक अनिश्चित संख्या हूँ
भटक रहा हूँ
अनंत के आसपास कहीं
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
bahut vicharniye rachna gambheer bhaav prakat karti hui rachna.badhaai.
जवाब देंहटाएंवाह सज्जन जी,
जवाब देंहटाएंआप तो शून्य से पंगा ले बैठे...और चल दए अनंत की ओर...?
अत्यंत सुन्दर कल्पना है ये......
बहुत ही गहन चिंतन कराती अभिवयक्ति...
जवाब देंहटाएंवाह क्या अन्दाज़ है…………।बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंइंजीनियर अब गणित की तरफ मूड रहा है| देखते हैं और क्या क्या जादुई रचनाएँ पढ़ने को मिलती हैं|
जवाब देंहटाएंSachmuch kya vichar hai. Bachapan se zero ko padha lekin asli matlab aaj samajh me aaya
जवाब देंहटाएंवाह सज्जन जी,
जवाब देंहटाएं.....अत्यंत सुन्दर कल्पना है !
नवीन जी ,यह कविता सृष्टि के जन्म की काव्यात्मक कथा है जिसे हम "बिग बेंग "कहतें हैं .डांस ऑफ़ क्रियेशन कहतें हैं ,शिव का तांडव कहतें हैं .धर्मेन्द्र जी के ब्लॉग तक पहुंचे लेकिन कमेंट्स वाली खिड़की खुली ही नहीं .इस कविता के बाद प्रस्तुत बेहतरीन ग़ज़ल भी पढ़ी जिसका हर अश -आर बे -मिसाल था और तीसरी कविता अनंत ,शून्य या इनफिनिटी को परिभाषित कर रही थी .वह भी मनोयोग से पढ़ी .
जवाब देंहटाएंराजेश कुमारी जी, विशाल चर्चित जी, सुषमा जी, वंदना जी, नवीन भाई, अशोक कुमार शुक्ला जी, संजय भाष्कर जी और वीरू भाई जी आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।
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