काश मैं गोड़ पाता
दिमाग के उन ऊपजाऊ कोनों को
जहाँ हमेशा खर-पतवार ही उगता है
काश मैं सींच पाता
दिमाग के उस रेगिस्तान को
जहाँ सिर्फ बबूल ही उगता है
काश मैं जीत पाता
दिमाग के अँधेरे कोने में बसे
उस राक्षस से
जो सामने आते ही
आधी ताकत ले लेता है
और मेरी ही ताकत से
मुझे हरा कर अपना गुलाम बना लेता है
काश मैं जीत पाता!
काश इंसान जीत पाता!
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
kash! aisha ho pata... bhut khubsurat....
जवाब देंहटाएंकाश मैं सींच पाता
जवाब देंहटाएंदिमाग के उस रेगिस्तान को
जहाँ सिर्फ बबूल ही उगता है
bahut badhiyaa
bahut sundar
जवाब देंहटाएंकाश मैं जीत पाता
जवाब देंहटाएंदिमाग के अँधेरे कोने में बसे
उस राक्षस से
जो सामने आते ही
आधी ताकत ले लेता है
और मेरी ही ताकत से
मुझे हरा कर अपना गुलाम बना लेता है
विलक्षण पंक्तियाँ| बधाई|
काश मैं जीत पाता
जवाब देंहटाएंदिमाग के अँधेरे कोने में बसे
उस राक्षस से
जो सामने आते ही
आधी ताकत ले लेता है
और मेरी ही ताकत से
मुझे हरा कर अपना गुलाम बना लेता है
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Aapne yahan par meri hi peeda ko apne shabd diye hai ,bahut bahut abhar aapka.
रचना के बिम्ब बहुत रोचक है शब्द संयोजन बहुत कमाल का खुबसूरत रचना
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