रेत सी मजलूम की तकदीर है
हर लहर से मिट रही तदबीर है
सूर्य चढ़ते ही मिटा देता सदा
भाषणों की बर्फ़ सी तहरीर है
देश बेआवाज़ बँटता जा रहा
हर सियासतदाँ गज़ब शमशीर है
घाव दिल के वक्त भर देता मगर
धड़कनों के साथ बढ़ती पीर है
सींचती जबसे सियासत क्यारियाँ
फूल भी हाथों को देता चीर है
कब तलक फैशन बताओगे इसे
पाँव में जो लोक के जंजीर है
फ्रेम अच्छा है, बदल दो तंत्र पर,
हो गई अश्लील ये तस्वीर है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
प्रियवर धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन !
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है…
फ्रेम अच्छा है, बदल दो तंत्र पर,
हो गई अश्लील ये तस्वीर है
हासिले-ग़ज़ल शे'र कहूं तो ग़लत नहीं होगा
देश बेआवाज़ बंटता जा रहा
हर सियासतदां गज़ब शमशीर है
आहाऽऽह … दुखती रग़ छू ली है आपने
कब तलक फैशन बताओगे इसे
पांव में जो लोक के जंजीर है
बहुत उम्दा ग़ज़ल कह दी जनाब ! मुबारकबाद !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत शानदार गज़ल हालात का सटीक चित्रण कर रही है।
जवाब देंहटाएंदेश बेआवाज़ बँटता जा रहा
जवाब देंहटाएंहर सियासतदाँ गज़ब शमशीर है ...
बहुत उम्दा .. लाजवाब शेर है ... सटीक बात कहता हुवा ...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
सींचती जबसे सियासत क्यारियाँ
जवाब देंहटाएंफूल भी हाथों को देता चीर है
....बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर बहुत सटीक...
bhut khubsurat gazal...
जवाब देंहटाएंसूर्य चढ़ते ही मिटा देता सदा
जवाब देंहटाएंभाषणों की बर्फ़ सी तहरीर है
धर्मेन्द्र भाई - तथाकथित स्वयंभू नेताओं के भाषणों पर करारा व्यंग्य कसा है आपने| बधाई|
राजेन्द्र जी, वंदना जी, दिगंबर जी, संगीता जी, कैलाश जी, सुषमा जी एवं नवीन भाई अशआर पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंघाव दिल के वक्त भर देता मगर
जवाब देंहटाएंधड़कनों के साथ बढ़ती पीर है
बहुत ही उम्दा शेर...
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल...
बहुत खूब.
Dharmendra ji
जवाब देंहटाएंek-ek shabd sach, bahut hee bhavmayee prastuti. badhai
शरद जी, एवं एस एन शुक्ला जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभाई धर्मेन्द्र जी बहुत ही सुंदर गज़ल ठीक आपके सहज व्यक्तित्व की तरह बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंबधाई और शुभकामनाएं....बहुत ही उम्दा शेर
जवाब देंहटाएंतुषार जी एवं अना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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