मेरी किस्मत में है तेरा प्यार नहीं
तेरी नफ़रत किंतु मुझे स्वीकार नहीं
दिल में बनकर चोट बसी जो तू मेरे
निकली फिर क्यूँ बन आँसू की धार नहीं
तुझसे होकर दूर मरा तो कबका मैं
रूह मगर क्यूँ जाने को तैयार नहीं
तुझको नफ़रत के बदले में नफ़रत दूँ
मान यकीं मैं इतना भी खुद्दार नहीं
जान मिरी हाजिर है तेरी खिदमत में
आता मुझ पर तेरा क्यूँ एतबार नहीं
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
bhut accha likha hai apne...
जवाब देंहटाएंतुझको नफ़रत के बदले में नफ़रत दूँ
जवाब देंहटाएंमान यकीं मैं इतना भी खुद्दार नहीं
जान मिरी हाजिर है तेरी खिदमत में
आता मुझ पर तेरा क्यूँ एतबार नहीं
बहुत खूब ...भावों को बखूबी लिखा है
जान मिरी हाजिर है तेरी खिदमत में
जवाब देंहटाएंआता मुझ पर तेरा क्यूँ एतबार नहीं
बहुत खूबसूरत शेर....
22 22 कर के चलने वाली इस बहर की गज़ल में आपने तख्ती का प्रयोग नियम के मुताबिक ही किया है| जब कि कई शायर छूट के हवाले से जायज ठहराते हुए इस बहर में 22 22 की जगह 1212 या 2121 वजन पर लिखते हुए भी देखे गए हैं|
जवाब देंहटाएंसुंदर गज़ल भाई धर्मेन्द्र जी बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर भावपूर्ण रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंनफरत आखिर स्वीकार क्यूँ होगा
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
तुझको नफ़रत के बदले में नफ़रत दूँ
जवाब देंहटाएंमान यकीं मैं इतना भी खुद्दार नहीं
बहुत खूब ... नफ़रत के बदले नफ़रत ... ये तो अपनी अदा नही ... लाजवाब ग़ज़ल है धर्मेन्द्र जी ...
sundar gajal
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति.......
जवाब देंहटाएंसुषमा जी, संगीता जी, वीना जी, नवीन भाई, जयकृष्ण राय जी, संगीता जी, साधना जी, वर्मा जी, दिगंबर नासवा जी, अजय जी और निवेदिता जी उत्साहवर्द्धन के लिए आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया
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