बड़ा अजीब खेल है लोकतंत्र का क्रिकेट
एक गेंद के पीछे ग्यारह सौ मिलियन लोग
उछल कर, गिर कर
झपट कर, लिपट कर
पकड़नी पड़ती है गेंद
कभी जमीन से, कभी आसमान से
जिसकी किस्मत अच्छी हो उसी को मिलती है गेंद
और बल्लेबाज
उसे तो मजा आता है क्षेत्र रक्षकों को छकाने में
अगर किसी तरह सबने मिलकर
बल्लेबाज को आउट कर भी दिया
तो फिर वैसा ही नया बल्लेबाज
उसका भी लक्ष्य वही
अगर पूरी टीम आउट हो गई
तो दूसरी टीम के बल्लेबाजों का भी लक्ष्य वही
सबसे ज्यादा पैसा है इस खेल में
इसीलिए तो क्रिकेट मेरे देश का धर्म है
जिसे देखना हर भारतवासी का कर्म है
क्यूँकि पता नहीं कब
किसी को ये उपाय सूझ जाए
कि कैसे हर खिलाड़ी के हिस्से में
कम से कम एक गेंद आए
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
sachchhai jisse koi mukr nahi sakta .... bahut sundar ....badhai
जवाब देंहटाएंअच्छी तुलना की है ....सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंहास्य और व्यंग्य का बखूबी इंतेज़ाम किया गया है इस कविता में
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