चिकनी मिट्टी के नन्हें नन्हें कणों में
आपसी प्रेम और लगाव होता है
हर कण दूसरों को अपनी ओर
आकर्षित करता है
और इसी आकर्षण बल से
दूसरों से बँधा रहता है
रेत के कण आकार के अनुसार
चिकनी मिट्टी के कणों से बहुत बड़े होते हैं
उनमें बड़प्पन और अहंकार होता है
आपसी आकर्षण नहीं होता
उनमें केवल आपसी घर्षण होता है
चिकनी मिट्टी के कणों के बीच
आकर्षण के दम पर
बना हुआ बाँध
बड़ी बड़ी नदियों का प्रवाह रोक देता है,
चिकनी मिट्टी बारिश के पानी को रोककर
जमीन को नम और ऊपजाऊ बनाए रखती है;
रेत के कणों से बाँध नहीं बनाए जाते
ना ही रेतीली जमीन में कुछ उगता है
उसके कण अपने अपने घमंड में चूर
अलग थलग पड़े रह जाते हैं बस।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
रेत के कणों से बाँध नहीं बनाए जाते
जवाब देंहटाएंना ही रेतीली जमीन में कुछ उगता है
उसके कण अपने अपने घमंड में चूर
अलग थलग पड़े रह जाते हैं बस।... waah
apni is rachna ko vatvriksh ke liye parichay tasweer blog link ke saath [email protected] per bhejiye
वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से आपसी प्रेम का विश्लेषण , बहुत सुन्दर बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
रेत के कण और चिकनी मिटटी का आकर्षण ...
जवाब देंहटाएंएक जोड़े रखता है , एक जोड़ नहीं सकता ...
नवीन बिम्बों से रची रचना ...
सुन्दर !
tulnatmak srijan se samyata ki koshish achhi lagi
जवाब देंहटाएंdhanyvad ji .
अच्छा लगा कविता में विज्ञान का साथ
जवाब देंहटाएंआभार
रेत के कणों से बाँध नहीं बनाए जाते
जवाब देंहटाएंना ही रेतीली जमीन में कुछ उगता है
उसके कण अपने अपने घमंड में चूर
अलग थलग पड़े रह जाते हैं बस।...
अद्भुत सोच...बहुत सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
रेत के कणों से बाँध नहीं बनाए जाते
जवाब देंहटाएंना ही रेतीली जमीन में कुछ उगता है
उसके कण अपने अपने घमंड में चूर
अलग थलग पड़े रह जाते हैं बस।
बहुत ही सशक्त भाव हैं धर्मेन्द्र जी .....
bahut sashakt rachna.
जवाब देंहटाएंरेत और चिकनी मिटटी के माध्यम से कितनी गहरी बात कह दी आपने... बहुत खूब.....
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि जी, सुनील जी, वंदना जी, वाणी जी, उदय वीर सिंह जी, रचना जी, कैलाश जी, हीर जी, अनामिका जी और वंदना महतो जी रचना पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र भाई अद्भुत कविता है ये
जवाब देंहटाएंअलग हट के वाली
रेत के कणों से बाँध नहीं बनाए जाते
जवाब देंहटाएंना ही रेतीली जमीन में कुछ उगता है
उसके कण अपने अपने घमंड में चूर
अलग थलग पड़े रह जाते हैं बस।
alag soch shayad hi kisine aesa socha hoga
bahut achchhi kavita
saader
rachana
नवीन भाई और रचना जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद रचना पसंद करने के लिए।
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