कबूतर छल रहा है
बवंडर पल रहा है ।१।
वही है शोर करता
जो सूखा नल रहा है ।२।
मैं लाया आइना क्यूँ
ये उसको खल रहा है ।३।
दिया ही तो जलाया
महल क्यूँ गल रहा है ।४।
छुवन वो प्रेम की भी
अभी तक मल रहा है ।५।
डरा बच्चों को ही अब
बड़ों का बल रहा है ।६।
वो मेरे स्नेह से ही
मेरा दिल तल रहा है ।७।
छुआ जिसको खुदा ने
वही घर जल रहा है ।८।
दहाड़े जा रहा वो
जो गीदड़ कल रहा है ।९।
जिसे सींचा लहू से
वही खा फल रहा है ।१०।
उगा तो जल चढ़ाया
अगिन दो ढल रहा है ।११।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
कैसे तारीफ़ करून समझ में नहीं आ रहा है ....कमाल के लिखते है आप.......अद्वितीय
जवाब देंहटाएंमैं लाया आइना क्यूँ
जवाब देंहटाएंये उसको खल रहा है
दहाड़े जा रहा जो
वो गीदड़ कल रहा है
छोटी बहर में कमाल के शेर...........बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है.