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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

कविता : गूलर का फूल

सैकड़ों किस्सों में आया
गूलर के फूल का नाम

गली गली चर्चा हुई
गूलर के फूल की

न जाने कितनों ने दुआ माँगी
अगले जन्म में गूलर का फूल हो जाने की

गूलर का फूल बेचारा
फल के अन्दर बन्द
खुली हवा में साँस लेने को तरसता रहा

कीड़ों ने उसमें अपना घर बना लिया
उसकी खुशबू
उसका पराग लूटते रहे

गूलर का फूल दुआ माँगता रहा
ईश्वर अगले जन्म में मुझे कुछ भी बना देना
बस गूलर का फूल मत बनाना।

6 टिप्‍पणियां:

  1. गुलर के फूल की पीड़ा की गहन अभिव्यक्ति।

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  2. goolar के ped की भी apni vyatha है... apna dard khud को ही samajh aata है ...

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  3. जील जी और दिगंबर नासवा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

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  4. उत्तम रचना आदरणीय सच ही कहा जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि 🙏

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